सिलबट्टे पे
मसाले कूटती नानी वो ओखली में मूसल
चलाती नानी कभी दही मही बिलगाती
नानी याद आती है कहानियां
सुनाती नानी । पौ फटते ही जगती
नानी सबसे आखिरी में सोने
वाली नानी सुबह सुबह पशुओं
को चारा लगाती नानी याद आती है वो
चटनी अचार मुरब्बे बनाती नानी ।हर बीमारी का घरेलु उपचार
बताती नानी पहली रोटी गाय को
खिलाती थी नानी बीमार होने पे
नजर भी उतारती थी नानी याद आती है वो
पापड सुखाती नानी । हर जात्रा से
पहले दही चीनी खिलाती नानी. झुर्रियों से भरे
चेहरे में भी खूबसूरत नजर आती नानी बचपन की हर याद में
समायी थी नानी. अब जब नहीं है
नानी तो बहुत याद आती है नानी ।