इक बंद से घर में खुली हवादार खिड़की थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
पूरे घर में चिड़िया सी
फुदकती रहती थी
त्यौहारों में एक नया ही
रंग घोल देती थी
बाबा की दुलारी और भाइयों
की लडैती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
कभी बाबा की तम्बाकू खाने
की नक़ल उतारती
कभी भैया के कपडे पहन
इतराती
कभी पीछे से अम्मा को धप्पा
बोल जाती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
खेत की मेढ़ों पर सरपट दौड़
लगाती थी
जरा सी तारीफ पर फिर दिन भर
इठलाती थी
दिन भर भागती फिरती फिर भी
कभी न थकती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
मां जब कहती कुछ काम सीख ले
ससुराल में काम आएगा
तो बाबा से शिकायत लगाती थी
मां जब कहती लडको जैसे लक्षण
हैं इसके
तो भैया के पीछे छिप जाती
थी
मां जब कहती की ससुराल में
नाक कटाएगी ये
तो जीभ चिढ़ा के भाग जाती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
पौ फटते ही जग जाती और देर
रात को सोती थी
हंसती तो घंटो हंसती और रोती
तो किसी भी बात पे रो देती थी
अपने दादू की शान और बाबा
की जान हुआ करती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
सबकी खाने पीने दवाईयों का
पूरा ध्यान रखती थी
भैया जब शहर जाते तो फरमाईशें
साथ भेज देती थी
भैया कुछ नहीं लायें तो
मुंह फुलाकर बैठ जाती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
कभी झटपट पेड़ पर चढ़ आम खाती
थी
कभी छज्जे से कबूतर उड़ाया
करती थी
साइकिल से पूरा गाँव नाप
आती थी
बरसात में भीग के मोरों के
साथ नाचती थी
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी
मां आज भी दौड़ती भागती है
मां आज भी जल्दी जाग जाती है
मां आज भी सबके खाने पीने
का ख्याल रखती है
पर मां अब जिम्मेदारियों के
तले दब गयी है
कमर उसकी थोड़ी सी झुक गयी है
चेहरे पे झुर्रियां पड़ने
लगी हैं
नजर थोड़ी कमजोर होने लगी
हैं
आंखें थोड़ी गड्डों में जाने
लगी हैं
उसकी उच्छंद सी चाल थकने
लगी है
उन्मुक्त सी वो हंसी अब
रुकने लगी है
घुटने में दर्द भी रहने लगा
है
वो मां जो किसी मेहमान के
आने का सुनकर
बस स्टैंड तक भाग कर जाती
थी
वो मां आज फाटक पर बैठ कर
रास्ता देखने लगी है
मां अब बदल गयी है
क्यूँ अब वो कोई जिद नहीं
करती ?
क्यूँ अब वो किसी से रूठती
नहीं है ?
क्यूँ वो अभी कुछ मांगती
नहीं हैं ?
मां क्यूँ बदल गयी है
मुझे वही मां चाहिए
वही पुरानी वाली मां
मां जो कभी १६ साल की एक
लड़की थी