कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
मुझ में इक बच्चा बुज़ुर्गों की तरह बोलता है
Mar 18, 2017
चलते चलते (२४)
इन्हें जो भी बनाते हैं वो हम तुम ही बनाते हैं
किसी मज़हब की साज़िश में कभी बच्चे नहीं होते।।
चलते चलते (२२)
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते,मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूँ ही चलता रहा,तुम बहुत देर तक याद आते रहे।
Mar 1, 2017
Subscribe to:
Posts (Atom)