Mar 18, 2017

चलते चलते (२५)

कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है मुझ में इक बच्चा बुज़ुर्गों की तरह बोलता है

चलते चलते (२४)

इन्हें जो भी बनाते हैं वो हम तुम ही बनाते हैं किसी मज़हब की साज़िश में कभी बच्चे नहीं होते।।

चलते चलते (२३)

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

चलते चलते (२२)

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते,मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे मैं बहुत देर तक यूँ ही चलता रहा,तुम बहुत देर तक याद आते रहे।

Mar 1, 2017

चलते चलते (२१)

कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा,
होता रहता है यूँ ही क़र्ज़ बराबर मेरा !!