ARVIND
Oct 3, 2017
चलते चलते (३८)
ये किस जगह पे क़दम रुक गए हैं क्या कहिए कि मंज़िलों के निशाँ तक मिटा के बैठे हैं-
बाकर मेहदी
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment