घटना कुछ सालों पुरानी है जब संचार क्रांति नहीं आयी हुयी थी और ज्यादातर गांव कच्ची सडकों द्वारा ही जुड़े हुए थे शहरों से और बैलगाड़ियां एक मुख्य साधन थीं आवागमन का । उत्तर प्रदेश के इक छोटे से गांव में रहने वाली सुलोचना की शादी रेलवे में कार्यरत सुरेश से ०२ साल पहले ही हुई थी । ०३ महीने पहले ही बच्चा हुआ था अचानक बाबूजी की तबियत ख़राब होने का तार मिला और तार मिलते ही दोनों लोग अपने ०३ महीने के बच्चे को निकल पड़े थे । पहले झाँसी से ट्रैन से आगरा आये थे फिर रोडवेज की बस से जसराना आ गए थे । अब यहाँ से गांव लगभग ०५ किलोमीटर दूर पड़ता था सामान्यतः तो चिट्ठी भेज देने से बैलगाड़ी यहाँ सूर्यास्त तक इंतजार करती थी इस बार थोड़ा ज्यादा ही लेट हो गए तो जसराने आते आते ही अँधेरा हो चला था । रात के लगभग ११ बज गए थे , अब दोनों पति पत्नी अपने नवजात बच्चे को लिए हुए तेजी से चले जा रहे थे पति के हाथ में सामान का बैग था और पत्नी की गोद में ०३ महीने की बच्ची थी ।
सर्दी का समय था अँधेरा हो गया था और डाकू बहुल क्षेत्र होने
के कारण अब कोई वाहन मिलना मुश्किल ही था दिन का समय होता तो तो कोई ना कोई
ट्रेक्टर या बैलगाड़ी मिल ही जाती पर अब तो ५ किलोमीटर पैदल ही तय करना था ।
स्याह अँधेरी अमावस की रात और डाकुओं का डर , दम्पति डरते डरते चले जा रहे
थे । आसपास खेत और घने पेड़ थे । लगातार चोरी और डाके की खबरें वो लोग सुनते ही
रहते थे इस क्षेत्र में वो लोग । ये
क्षेत्र डाकुओं की कहानियों से भरा पड़ा था । ये डाकू आसपास के गॉंवों से ही आते थे, दिन में गांवों में
ही आम जिंदगी जीते थे और रात में चोरी और लूट का काम करते थे । ये भी सुनते थे की
कभी कभी डाकू ज्यादा सामान न मिलने पर लोगों को जान से मार देते हैं । हम इंसानों का एक मूलभूत स्वभाव होता
है की जब भी कोई विपत्ति में पड़ते हैं तो हमेशा किसी और कसूरवार ठहरना चाहते हैं उसी
तरह इस विपत्ति की घड़ी में सुरेश सुलोचना के गांव को कोसता हुआ जा रहा था साथ ही
उस लम्हे को कोस रहा था जब इस गांव की लड़की से शादी की और आज ये विपत्ति की घड़ी
देखनी पड़ रही है । सुलोचना चुपचाप सब सुनते हुए
चली जा रही थी ।
खैर, कच्ची सड़क पे दोनों पति
पत्नी किसी अनिष्ट की आशंका के साथ चले जा रहे थे । अचानक पास की झाड़ियों में कुछ सरसराहट हुयी दम्पति ने एक
दुसरे की और देखा और थोड़ा तेजी से चलना शुरू
कर दिया । अचानक सरसराहट बढ़ गयी और फिर एक टोर्च की रौशनी चमकी और ४-६ लोग दाएं बाएं तरफ से सड़क पर आ गए । दम्पति को मानो काटो तो खून नहीं, ०२ डाकू उनके दाएं खड़े हो
गए और ०२ उनके बाएं खड़े हो गए ०१ सामने खड़ा था उसके पीछे अँधेरे
में कम्बल लपेटे हुए एक और डाकू खड़ा था ।
सभी डाकू हाथ में हंसिया और लाठी लिए थे बस कम्बल वाला आदमी
एक बन्दूक लिए हुए था और हावभाव से वो इनका सरगना मालूम होता था ।
डर के मारे पति पत्नी की घिग्घी बंधी हुई थी तभी आगे खड़े
डाकू ने टोर्च की रौशनी सड़क पे मारी और उस रौशनी में एक अंगोछा सड़क पे बिछाया और दम्पति की ओर देखकर चिल्लाया जो भी सामान नकदी गहने वगैरह हों
इस पर रख दो । पति पत्नी तो डरे हुए थे, पति सोच रहा था
कैसे भी जान छूटे आज । पति ने अपना पर्स, घडी और जो थोड़ा नकद
रखा था जेब में वो अंगोछे पे रख दिया ।
डाकू :बस इतना सा सामान ? मजाक है क्या ये ?
(अब पति पत्नी डर गए इन डाकुओं का कुछ भरोसा नहीं होता यहीं
लूटपाट करके मार के डाल देते हैं मुसाफिरों को)
डरते डरते पति बोला : भैया अब कुछ है नहीं हमारे पास ।
डाकू बोला: बेवकूफ समझते हो हमें ?
आदमी की बोलती बंद थी, महिला की भी आँखों में डर के मारे आंसू आ रहे थे
बच्ची भी भूख से व्याकुल हो रोने लगी ।
महिला डर से कंपकंपाते बोली: भैया, जो कुछ था यहीं रख दिया बड़ी दूर से आ रहे हैं हम । पिताजी की तबियत की खबर
सुनी तो भैया जैसे बैठे थे ऐसे ही भागे । शादी के बाद से गॉंव नहीं जा पायी हूँ
अभी बच्चा होने के बाद ०३ साल में पहली
बार अपने घर जा रही थी आते आते लेट हो गए भैया जाने दो हमें ।
डाकू ने अपने सरदार की तरफ देखा , सरदार ने कुछ इशारा किया तो डाकू सामान उठाते हुए
बोला ठीक है जाओ, कौन सा गांव है तुम्हारा ?
महिला बोली : जसरामपुर ।
गांव का नाम सुनते ही सामान समेटते हाथ एक दम ठिठक गए और वातावरण में एक निस्तब्धता सी छा गयी । उसने अपने सरदार की तरफ देखा , सरदार दो कदम आगे
आया पहली बार उसका चेहरा हल्का सा दिखाई दे रहा था उसने पूछा : किसके घर जाना है
जसरामपुर में ?
महिला: भैया मास्टर साब के यहाँ
सरदार: मास्टर रघुबीर सिंह?
महिला: हाँ भैया ।
सरदार ने अपने साथी को पास बुलाकर फुसफुसाते हुए कुछ कहा, उसने सारा सामान पति को दे दिया
(पति पत्नी दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये क्या हुआ? )
सरदार ने नवजात बच्चे की तरफ इशारा करके पूछा ये तुम्हारा
बेटा है की बेटी?
महिला: बेटी है भैया ।
सरदार ने अपने साथी को कुछ इशारा किया और जाने के लिए मुड़
गया ।
डकैत महिला के पास आया और बच्चे के हाथ में कुछ रख दिया सभी
डाकू जाने के लिए मुड़े तो पति ने पूछा भैया आपके सरदार
ने क्या बोला था आपको ?
डाकू बोला: सरदार ने कहा की जाने दो इनको अपने गांव की बेटी
है ।
(इसके बाद डाकू चले
गए पति पत्नी चुपचाप अपने रस्ते चल दिए )
अचानक महिला को याद आया तो उसने बच्ची का हाथ टटोला । देखा
की बच्ची की हाथ में ५१ रुपये थे , पति ने आश्चर्य से पत्नी की और देखा तो पत्नी बोली चूँकि मैं उनके अपने गॉवों
की बेटी हूँ और उसने पहली बार बेटी को देखा तो नेग दिया है ।
पति पत्नी अपनी किस्मत पे भरोसा नहीं कर पा रहे थे और ईश्वर
को लाख लाख धन्यवाद देते हुए गांव की ओर चले । जब गांव की लालटेन दिखना शुरू हुईं तब सुरेश रुका
ओर मुड़कर बोला आज तुम्हारी इस "गांव की बेटी" वाले डाकू ने मेरी ऑंखें
खोल दीं । मुझे नहीं पता था की
आज भी गांव वालों के संस्कार जिन्दा हैं । सुलोचना मुस्कुरा दी, सामने वो गांव था जिसकी वो बेटी है । ।