बात जुलाई २०११ की है , मैं एक निजी इकाई में मुंबई में कार्यरत था और एक कार्य के सिलसिले में आसनसोल (पश्चिम बंगाल) आना पड़ा । उस समय अकसर इस तरह की आधिकारिक यात्राओं पर जाना पड़ता था और मेरा स्वभाव थोड़ा घुमक्कड़ किस्म का था तो मेरा एक नियम था कि अपना आधिकारिक कार्य निष्पादित करके मैं उस जगह को घूम लिया करता था । रविवार की रात को अपना कार्य ख़तम करके और ०२ घंटे की नींद लेकर आसनसोल घूमने की योजना बनायीं । इंटरनेट पर देखने पर मालूम हुआ कि यहाँ कुछ उद्यान हैं कुछ बांध हैं और इक बड़ा इस्पात संयंत्र है । चूँकि इस्पात कारखाना देखने में ज्यादा दिलचस्पी थी नहीं तो सुबह एक गाड़ी किराये पे लेकर मैथन बांध घूमने निकला उसके बाद नेहरू उद्यान गया फिर वापिस लौटते समय अचानक एक भोंपू का स्वर हुआ, समय देखा तो ०५ बज रहे थे । एक फाटक सामने था और एक जनसैलाब सा उमड़ पड़ा था। इससे पहले कभी किसी कारखाने के पास मैं कभी रहा नहीं था तो कारखाने से निकलते जनसैलाब को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया , दोपहिया और चौपहिया वाहनों के सागर को बहते देखकर मैं अभिभूत हो उठा । गाडी वाले से पूछा ये क्या जगह है तो उसने बताया की ये "टनल द्वार" और आप इसको इस्पात संयंत्र के सामने खड़े हैं । मुझे प्रभावित देखकर गाड़ी वाले ने ये बताया की इस कारखाने के ५-६ प्रवेश एवं निकास द्वार हैं और कारखाने में करीब १०००० लोग काम करते हैं ।किसी भी अन्य इंसान जिसने ऐसे कारखाने देखे होंगे उसके लिए ये भोंपू का बजना एक सामान्य सी चीज होगी पर मेरे जैसे निजी इकाई में काम करने वाले आदमी के लिए जिसने घुमक्कड़ी तो बहुत की थी पर कभी कारखाने नहीं देखे ये एक अविस्मरणीय पल था । इसके बाद मैं "टनल द्वार" से "स्कोब द्वार" तक सड़क से कारखाने को देखता गया । इसको इस्पात संयंत्र तभी से मेरे दिमाग में बैठ गया था । संयोगवश उस समय मैंने ०३ लिखित परीक्षाएं दी हुई थीं जिसमे से "सेल" का मेरा साक्षात्कार का न्योता आ गया जो फरवरी २०१२ में होना था चेन्नई में । समूह वार्ता के बाद जब साक्षात्कार लिए मैं प्रस्तुत हुआ तो मुझे पहला सवाल यही पूछ लिया गया की आप मध्य प्रदेश के निवासी हैं आपने कभी कोई इस्पात संयंत्र देखा है या आप इस्पात कारखाने वालों की जीवनशैली से परिचित हैं? मैंने उनको अपनी इसको इस्पात संयंत्र की यात्रा
का अनुभव कह सुनाया तो साक्षात्कारियों ने एक अभियुक्ति की कि इस्पात कारखाने के बारे में आपका सकारात्मक रुख हमें अच्छा लगा । साक्षात्कार के बाद मैं इस बात को भूल गया और अपने कार्य में लग गया फिर अप्रैल के प्रथम सप्ताह में नतीजे आये तो मालूम पड़ा की मेरा "सेल" में चयन हो गया है और मुझे "इसको इस्पात संयंत्र" ही मिला है । आज मैं घर से हजारों किलोमीटर दूर यहाँ कार्यरत हूँ अपने पूरे जीवन में संयोग का इससे बड़ा उदाहरण मैंने आज तक नहीं देखा ।।
इसको इस्पात संयंत्र में आयोजित कहानी लेखन स्पर्धा में मेरी प्रविष्टि , इसे चौथा स्थान प्राप्त हुआ ॥ यह मेरा प्रथम प्रयास था राजभाषा की किसी प्रतियोगिता में ।।
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