वंदना और सौरभ फॅमिली कोर्ट से बाहर निकले तो एक दूसरे की तरफ देखा भी नही। न
कोई अलविदा, न कोई 'अपना ध्यान रखना'
या 'हम दोस्त तो रह सकते हैं' जैसी दिलासा । बस जैसे दो अजनबी एक यात्रा ख़तम होने पर अपनी अपनी मंजिल आने पे उतर जाते हैं । इनके बीच तो उतना भी शिष्टाचार नहीं बचा था बची थी तो बस
कड़वाहट । वंदना पापा की कार में पीछे
बैठी तो पिछले ०३ साल उसकी आँखों के सामने एक फिल्म की तरह घूम गए ।
वंदना
वंदना एक बहुत बड़े और असाधारण से परिवार में जन्मी साधारण सी लड़की थी । पिताजी
का राजनीति में अच्छा रसूख था । भाई नामी लेखक था । ऐसे सब कुछ था उसके पास, पैसा- ऊंची जाति- नामी खानदान ।
जैसे कई बार होता है की कई बड़े पेड़ों के साये में छोटे मोटे पौधे ढंग से पनप
नहीं पाते । ऐसा ही कुछ वंदना के साथ हुआ था । वो इतने बड़े लोगों के बीच अपना वजूद
तलाश ही नहीं पायी । उसको अपना घर एक सोने का पिंजरा लगता जिसमे सुविधाएँ तो सब
थीं पर थीं पिंजरे के अंदर ।
जब ग्रेजुएशन कर रही थी तब उसकी जिंदगी में तपन आया था और तब उसे पहली बार
अपने होने का और अपने जीने का अहसास हुआ था । कितने सपने देखे थे दोनों ने मिलके ।
वंदना को बहुत कुछ नहीं चाहिए था जिंदगी से बस थोड़ा प्यार और थोड़ी आजादी चाहिए थी
जो उसके घर में नहीं मिल पायी थी पर तपन
ने दी थी । जब इंसान प्यार में होता है तो प्रैक्टिकल थोड़ा कम और इमोशनल थोड़ा
ज्यादा हो जाता है ।
तपन
तपन बेपरवाह सा, आज में जीने वाला लड़का था ।
कोई नियम कानून नहीं मानता था । तपन के साथ
समस्या यही थी की वो किसी भी चीज को सीरियसली नहीं लिया करता था न जॉब को, न पैसे को ।
जब वंदना ने अपने और तपन के बारे में घर पे बताया तो बवाल तो होना ही था हुआ भी
। काफी हल्ला गुल्ला हुआ । वो काफी रोई , मिन्नतें की पर पापा नहीं पिघले उलटे उसपे प्रतिबन्ध लगा दिए
गए । पापा को बेटी की ख़ुशी से ज्यादा अपने
नाम ख़राब होने का डर था ।
उसने बड़े भैया से तपन से बस एक बार मिल लेने बोला पर बड़े भैया तपन से मिलकर और
ज्यादा खिलाफ हो गए इस रिश्ते के । उन्हें तपन अपनी ही दुनिया में खोया सा लगा ।
विकास भैया : छोटी मैं मिला था उस लड़के से यार । वो एकदम जिम्मेदार टाइप का
नहीं है । कुछ प्लान नहीं किया है फ्यूचर का । किसी इंसान की जिम्मेदारी उठाने
लायक है ही नहीं वो । तेरा नुकसान ही रहेगा जिंदगी भर ।
वंदना : भैया प्यार में भी नफ़ा नुक्सान
देखते हैं क्या?
विकास भैया : शादी में देखते हैं । प्यार अँधा होता है , आदर्शवादी होता है पर जिंदगी तर्कों पे चलती है।
जिस घर में लड़की के अफेयर का मामला उठ जाता है फिर घर वालों को वो लड़की बोझ
लगने लगती है । उन्हें लगता है जल्दी से कैसे इसे ठिकाने लगाएं । वंदना और तपन की
कहानी सामने आने के बाद हाथों हाथ वंदना के लिए एक आईएएस लड़का ढूंढ लिया गया ।
लड़का अनाथ था उसे एक बड़ा परिवार मिला और वंदना को एक आईएएस पति सौरभ । वंदना को
अपनी कहानी फिल्मी लगती थी पर उसे पता नहीं था की जिंदगी कभी फिल्मी नहीं होती ।
सौरभ ”Self-Made” टाइप लड़का था । कम उम्र में
ही माता पिता को खो चुका था । बहुत मेहनत से ये मुकाम पाया था । वो काफी कम बोलता
था । ज्यादातर अपने में ही रहता । पढता रहता, लिखता रहता । एक
अनाथ बच्चों के NGO से जुड़ा हुआ था तो नौकरी के अलावा अधिकांश समय वहीं बिताता ।
वंदना अपने घर की जेल से निकल कर एक दूसरी जेल में आ गयी । उसमे और सौरभ में
बहुत अंतर था । सौरभ ज्यादातर समय काम में व्यस्त रहता । फिर समय होता तो NGO
चला जाता । वंदना ने भी शुरू
शुरू में उसके NGO में जाना शुरू किया पर जल्दी ही वो बोर हो गयी । सौरभ की ऑफिसियल पार्टीज में
भी उसे अपने घर की पार्टियों जैसी ही फीलिंग आती । जब आप अंदर से खुश नहीं होते
हैं तो छोटी छोटी ऊपरी खुशियां आपको खुश नहीं रख पातीं । वंदना को चाहिए था कोई
बात करे । उसका हाल जाने । अपना हाल सुनाये । उसको सौरभ के किसी दोस्त ने बताया था
की सौरभ किसी को पसंद करता था और उसकी मौत ने सौरभ के सारे इमोशन सुखा दिए हैं । डेढ़ साल बाद उसकी बेटी हुयी । कितनी सुन्दर थी, कितनी प्यारी सी ऑंखें हरे रंग की । वंदना की घसीटती हुयी जिंदगी जैसे दौड़ने
लगी । वंदना की जिंदगी का केंद्र बन गयी वो ।
फिर ०४ साल बाद उसकी जिंदगी में वो दिन आया जिसे वो चाह के भी भुला नहीं सकती
कभी । वो अपनी माँ के घर आयी हुयी थी । बच्चे खेल रहे थे । खेलते खेलते बच्चे
बालकनी की रेलिंग के पास चले गए । वंदना ने आवाज भी दी की थोड़ा दूर खेलो रेलिंग से
। तभी एक ‘थड’ की आवाज हुयी । वंदना और
उसकी माँ भागते हुए आये तो देखा की प्रिशा रेलिंग से फिसल कर नीचे गिरी पड़ी है और
खून में लथपथ है ।
तुरंत उसे लेकर अस्पताल भागा गया सौरभ भी आ गया ।
डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की उसे बचाने की पर बहुत खून बह जाने से उसे बचा न सके
। वंदना खबर सुन के बेहोश हो गयी । जब होश आया तब अपने घर में थी हाल में आकर देखा
की प्रिशा की बॉडी रखी हुयी है । वो आखिरी बार अपनी बेटी को अपनी गोदी में भरने
आयी, उसकी ऑंखें देखने आयी पर ये देख कर चौंक गयी की
आँखों की जगह पर रुई ठुंसी हुयी है । उसने भैया की तरफ देखा तो वो बोले की सौरभ ने
प्रिशा की ऑंखें डोनेट कर दी हैं ।
वंदना के जैसे सारे शरीर में आग लग गयी । जिंदगी भर की कड़वाहट उसके दिमाग में
चली गयी जैसे । कोई इतना निष्ठुर, इतना क्रूर, इतना मतलबी कैसे हो सकता है? अपनी बेटी के मरने पे कौन
ये सोच पाता है? अपनी महानता का ढिंढोरा पीटने में कोई इतना अँधा
कैसे हो सकता है की अपनी मरी हुयी बेटी की ऑंखें निकलवा दे? वंदना को लगा जैसे उसका सर फट जायेगा ।
कुछ दिन शोक में होने के बाद वंदना ने जो पहला काम किया वो था तलाक की अर्जी
देने का । अब कुछ बचा नहीं था उन दोनों के बीच । जो रिश्ता असल जिंदगी में मर चुका
था उसका कागजों पे भी मरना जरुरी था । प्रिशा की मौत के बाद से दोनों में कोई
बातचीत भी नहीं हुयी थी । आखिर वो दिन आ गया जब दोनों अलग हो गए ।
वर्तमान
यादों की ये रील और लम्बी चलती पर तभी घर आ गया । इसी बीच वंदना को तपन के बारे में एक दोस्त से मालूम पड़ा था । नौकरी
में आ गया था वो । सुना था एक लड़की गोद ले ली है उसने । तपन का नंबर निकाल कर उसे
एक-दो बार फ़ोन भी किया तपन ने उसे बहुत हिम्मत बँधायी थी । एक दिन उसका मैसेज आया
की कल फ्री हो तो घर आओ एक खास ओकेजन है । बेटी से भी मिल लेना । वंदना कल जाना
नहीं चाहती थी क्यूंकि कल प्रिशा की पहली पुण्यतिथि थी फिर उसकी एक सहेली ने
समझाया की जिन तारीखों और जगहों से बुरी यादें जुडी होती हैं उन्हें भूलने का सबसे
बढ़िया तरीका है कुछ नया उन्ही तारीखों और जगहों पे कर लेने का । यही सोचकर वंदना
शाम को तपन के घर गयी । तपन ने दरवाजा खोला ।
वंदना: कैसे हो? सुना है बहुत mature टाइप हो गए हो । कोई बच्ची adopt
कर ली है ? कहाँ है वो ?
तपन: बस "बदला न अपने आप को, जो थे वही रहे । मिलते रहे
सभी से मगर अजनबी रहे । " बेटी केक रेडी कर रही है ।
वंदना: क्या बात है .. आज क्या मौका है वैसे?
तपन: मौका बहुत खास है। मैंने जब बेटी को गोद लिया था तब इसकी ऑंखें नहीं थीं ।
मैंने बहुत ढूंढा पर इसका रेयर ब्लड ग्रुप होने की वजह से कहीं कुछ नहीं मिल पा
रहा था। ऐसे भी अपने देश में अंगदान का इतना कोई माहौल नहीं है फिर लास्ट ईयर मुझे
मालूम पड़ा की एक बच्ची की मौत हुयी है और उसके पिता उसकी आंखे दान कर रहे हैं ।
सोच यार किस तरह का आदमी होगा वो जो अपनी बेटी की मौत के समय भी किसी दूसरे इंसान
के बारे में सोच सकता है? इतनी हिम्मत कैसे आयी होगी
उसमे?
वंदना (लड़खड़ाते हुए) : कौन था वो
आदमी ?
तपन : ऐसे तो नाम मालूम नहीं पड़ता पर मुझे कैसे भी एक बार जानना था ऐसे इंसान
के बारे में । कोई सौरभ नाम का था । आईएएस था । मैंने उस इंसान को इज्जत देने के
लिए अपनी बेटी का नाम उसी इंसान की बेटी के नाम पे रखा है ।
तभी उसकी बेटी बाहर आयी ।
तपन: आओ प्रिशा । आंटी को हेलो
बोलो ।
वंदना की नजर उस बच्ची पर पड़ी वही कद, वही उम्र और एकदम वही हरी ऑंखें ।
वंदना को जैसे काटो तो खून नहीं उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने बहुत
झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया हो। जैसे किसी ने सर्दी की सुबह में चेहरे पे ठंडा पानी
फेंक दिया हो । वो आज तक सौरभ को स्वार्थी समझती थी अब उसे समझ आया था की मतलबी तो
वो थी । उसने अपने से बाहर कभी सोचा ही नहीं किसी के लिए
कुछ ।
तपन: अब सब कुछ है हमारे पास बस तुम्हारी कमी है तुम आ जाओ।
वंदना ने प्रिशा को गले लगा लिया उसकी आँखों से आंसू बहने लगे आंसू दुःख के, पश्चाताप के।