मैं हिंदी भाषी क्षेत्र से जुड़ा हुआ हूँ। जब आप ऐसे क्षेत्र से आते हैं और लिखने पढ़ने में थोड़ी भी रुचि रखते हैं तो आप प्रेमचंद तक पहुंच जाते हैं और फिर वहीं ठहर जाते हैं। फिर आपका नजरिया प्रेमचंदमय हो जाता है। आप जो पढ़ते हैं उसे प्रेमचंद से ही तुलना करते हैं। बूढ़ी काकी, मंत्र, कफ़न ऐसी कहानियाँ हैं जो आपको इमोशनल कर देती हैं। प्रेमचंद का सारा साहित्य आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद पढ़कर ही मैंने जाना और माना था कि किरदार हीरो या विलन नहीं होते, वो बस किरदार होते हैं। ये भी कहना प्रासंगिक है कि अगर मैं कभी शरत चंद्र को न पढ़ता तो ये प्रेमचंद वाला हैंगओवर ताउम्र चलता। (प्रेमचंद के जन्मदिवस पर)
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