गाँव था सुजालपुर । गाँव में गरीबी भुखमरी फैली हुयी थी। कई परिवार गाँव छोड़ छोड़कर पास के शहरों में मजदूरी करने चले गए थे। गाँव वालों का मुख्य व्यवसाय खेती हुआ करता था पर कई साल से बारिश नहीं हुयी तो सारी जमीन ही बंजर होने लगी थी। छोटी मोटी कुछ फसलें उगाकर लोग काम चलाते थे या जानवर पालकर और उनका दूध बेचकर अपनी जीविका चलते थे। गाँव में मुश्किल से १५-२० परिवार बचे थे। यही हालत आसपास के ३०-४० गांवों की थी। लोग रुढ़िवादी थे ।
उसी गाँव में नए नए आये थे बलराम और पिंकी। गाँव के बाहर की तरफ ही अपना छोटा सा तम्बू गाड लिया। बाद में गाँव में थोड़ी जान पहचान हुयी तो अपनी फूस की एक झोपडी बना ली। दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा और मिलनसार था। सबसे बहुत अच्छे से मिलते और सभी के दुःख सुख में खड़े रहते। उन्ही के पड़ोस में उषा और मनोज रहते थे। अक्सर मनोज और बलराम साथ बैठते तो बातचीत का दौर निकल पड़ता।मनोज : एक बात बताओ बलराम भाई। तुम्हारी क्या कहानी है? कहाँ से आये हो ? इस क्षेत्र के तो नहीं लगते हो।
बलराम : (कुछ सोचते हुए ) कहानी क्या ही होगी। यहाँ से २०० किलो मीटर आगे हमारा गाँव था। उसी में पैदा हुए , उसी में पले बढे फिर उसी गाँव के पास एक गाँव से शादी हुयी। शादी के 5-6 साल हो गए थे बच्चा नहीं हुआ था। पिंकी का बड़ा मन था की बच्चा होता पर विधाता को जो मंजूर हो। बापू तो बचपन में ही चला गया था बाद में मां भी चली गयी। तब भी हम दोनों किसी तरह शांति से अपना गुजरा करते थे। फिर एक दिन पड़ोस की एक लड़की थी पिंकी की अच्छी बात होती थी उससे। वो गर्भवती हो गयी। पिंकी उसका ध्यान रखने लगी। अच्छे से खाए पिए, चलने फिरने में ध्यान रखे पिंकी की यही जिम्मेदारी थी। पिंकी शाम में उसकी तबियत का ऐसे बताती जैसे वो खुद गर्भवती हो। अपने खाने पीने की भी कोई सुध नहीं थी। अब विधाता को पता नहीं क्या मंजूर था प्रसव के समय औरत को बहुत ज्यादा दर्द होने लगा। गाँव के लोग थे झोला छाप डॉक्टरों के चक्कर में पड़े रहे जब शहर के बड़े अस्पताल ले गए तब उसने बताया कि बच्चे के गले में नाल फंस गयी है ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन कराना होगा फिर खर्चा भी ज्यादा होगा ये सुनकर गाँव वाले थोड़ी देर उहापोह में फंसे रहे फिर जब तक मन बनाया ऑपरेशन का तब तक देर हो चुकी थी। बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ। गाँव में लोगों ने शकुन अपशकुन शुरू कर दिया। सारा इल्जाम पिंकी पर डाल दिया। बोलने लगे लोग की ये बाँझ है यही बच्चा खा गयी है , इसको तो आसपास ही नहीं आने देना था। और भी पता नहीं क्या क्या कहा गया। हमें गाँव से अलग थलग कर दिया। ना कोई बोलता न कोई सामने पड़ता। मैंने सोच लिया जहाँ इज्जत नहीं वहां क्या रहेंगे। पिंकी भी थोड़ी शांत सी रहने लगी थी। पहले नवरात्री पिंकी बड़े उत्साह से मनाती थी। व्रत रखती, पूजा करती, अपनी हैसियत के अनुसार कन्या भोज करा देती पर फिर उसने सब छोड़ दिया। हमने अपना गाँव छोड़ा और दुसरे ठिये की खोज में इस गाँव आ गए। कोई हमें बोला भी कि इस गाँव में मत रहना बड़ा मनहूस गाँव है। हमने सोचा हम भी मनहूस हैं ये भी मनहूस है अच्छा ही साथ निभेगा। आ गए यहाँ।
मनोज : सही में गलत तो हुआ तुम्हारे
साथ। भाभी अब नवरात्री करती हैं या नहीं?
बलराम : बस निराहार व्रत रखती है अब और शाम को आटे का एक दीपक जला देती है। खैर ये सब छोडो। ये तो हुयी हमारी बात। अब एक बात बताओ ये गाँव में इतनी गरीबी और भुखमरी क्यूँ है ? सब इसे मनहूस क्यूँ कहते हैं। पूरा गाँव वीराना सा दिखता है।
मनोज : अरे क्या बताएं बलराम भाई, बात केवल इस गाँव की नहीं है यहाँ आसपास 30-40 गांवों की यही हालत है। गरीबी, बेरोजगारी से लोगों की कमर टूटी पड़ी है। मौसम भी कुछ अजीब सा ही है।
बलराम : वही तो पूछ रहा हूँ ऐसा क्यूँ है ? जमीन पूरी बंजर दिखती है।
मनोज : अरे, सब श्राप है।
बलराम : श्राप किसका ?
मनोज : दुर्गा माता का। तुमने ध्यान नहीं दिया होगा कि इस सारे क्षेत्र में ही लकड़ियाँ बहुत कम हैं।
बलराम सोच में पड़ गया।
मनोज : सोचो मत, सही में ऐसा है। ये सब गाँव बहुत रुढ़िवादी हैं। जाति-पाति, धर्मं, लड़का लड़की सब तरह का भेदभाव यहाँ चलता है पर सबसे बड़ा भेदभाव हैं यहाँ पर लिंग भेद का।
बलराम : मतलब ?
मनोज : मतलब ये बलराम बाबु की यहाँ लोग
लकड़ियों पर लड़कों को प्राथमिकता देते हैं। मन्नतें मानी जाती हैं , टोटके किये जाते
हैं ताकि लड़के हों बस इतना ही नहीं है जैसे
ही गर्भ ठहरता है ये कवायद शुरू हो जाती है की कैसे ये लड़का निकले | बेटी होना अपने आप में एक त्रासदी होती थी पति कई दिनों तक पत्नी से बात नहीं
करते थे| सास के ताने होते थे| वंश रुक जाने की चिंताएं हुआ करती थीं | किसी की बेटी कम उम्र में
मर जाए तो लोग ये बोलकर सांत्वना देते की “लड़की मरे भाग्यवान की“ | लड़की होने पर उसे ठिकाने
लगाने की कोशिश की जाती |
बलराम : ठिकाने लगाने की मतलब ?
मनोज : ठिकाने लगाने की मतलब मारने की | जो मुख्य रोड के पास तालाब है ना, वहीँ
अड्डा है इन सब चीजों का | देखना कभी गौर से की
कुत्ते, सियार घुमते रहते हैं वहां |
बलराम हतप्रभ सा बैठा था |
मनोज : कई साल पहले एक बार हुआ यूं की
नवरात्री थी | बहुत तेज बारिश हो रही थी | गाँव में किसी घर में एक बच्चा हुआ जो की
लड़की थी | अब लोगों को पता नहीं क्या नशा चढ़ा था
सुबह उस नवजात बच्ची का मृत शरीर वहीँ तालाब किनारे पड़ा मिला| अब सोचो, नवरात्रि पर जब सारा देश
कन्याओं को दुर्गा मानकर पूजता है तब कन्या भ्रूण हत्या हो जाना कितनी बड़ी बात है
और कितनी बुरी बात है | बस वो दिन था और आज का दिन है आज तक बारिश नहीं हुयी इस पूरे
क्षेत्र में | सूखा पड़ा हुआ है |
अब युवा तो सारे बाहर चले गए हैं गाँव छोड़कर और महिलाएं और बूढ़े यहाँ रहने
पर मजबूर हैं | हमारे जैसे लोग २-३ महीने
शहर में काम करते हैं फिर १५ दिन गाँव रह जाते हैं | इस गाँव में कुछ रह नहीं गया अब |
एक मनहूसियत सी छाई रहती है गाँव के ऊपर | सब गुजर बसर के
लायक ही कर पाते हैं, फल फूल कोई नहीं पा रहा था |
बलराम : ये तो बड़ा बुरा हुआ गाँव के साथ |
मनोज : बुरा क्या हुआ ? जो बोया है वही
काट रहे हैं | अभी भी लोग सुधरे नहीं हैं
| अभी भी चलते फिरते कन्या भ्रूण हत्या की
खबरें आती रहती हैं | खैर छोडो |
जब दोनों उठे तो दोनों का मन भारी था | मनोज , बलराम के परिवार के साथ जो हुआ
उसके बारे में सोच रहा था और बलराम गाँव के बारे में सोच रहा था |
कुछ दिन गुजरे | बलराम ने शहर में कुछ काम पकड़ लिया था |
सुबह जाता शाम में लौट आता | फिर नवरात्री आई |
पिंकी : सुनो न , आज मंदिर ले चलो
मुझे |
बलराम : क्यूँ ?
पिंकी : आज नौवां दिन है नवरात्री का | आज बहुत मन हो रहा है मंदिर जाने का | यहाँ तो आसपास कुछ है नहीं | पास वाले गाँव ले चलो |
बलराम: ठीक है शाम में आता हूँ तब चलते
हैं |
बलराम शाम को आते आते बहुत थक जाता था पर
बहुत दिनों बाद पिंकी ने कुछ बोला था तो मना नहीं कर सका| शाम को साइकिल पर बैठ कर दोनों निकले | मंदिर से दर्शन करके लौटते लौटते अँधेरा
घिर आया था | बलराम ने सोचा एक शार्ट कट लिया जाए और साइकिल
मुख्य रोड से नीचे तालाब के किनारे उतार लिया | वहां से निकल ही रहे थे की कुछ आवाज सी आई | बहुत धीमी धीमी कुछ आवाज थी | रात का सन्नाटा ना होता तो शायद सुनाई भी
ना आती | बलराम थोडा तेज साइकिल चलाने लगा |
पिंकी : ये कैसी आवाज थी ? किसी बहुत छोटे
बच्चे के रोने की लग रही थी |
बलराम : अरे ये सब एरिया ठीक नहीं है | यही तो वो जगह है जहाँ गाँव वाले कन्या
भ्रूण छोड़ जाते हैं | यहाँ तालाब है , इसके आगे निकलकर नाला है | जंगली जानवर भी घुमते रहते हैं |
पिंकी : जो भी हो रूककर तो देखना ही पड़ेगा
की क्या है?
बलराम : अरे भूत प्रेत भी ऐसी आवाजें निकालते
हैं |
पिंकी : नहीं ,चलकर देखेंगे |
बलराम समझ गया की पिंकी को समझाना मुश्किल
है | उसने साइकिल टिकाई और आवाज की दिशा में आगे बढ़ने लगा | पीछे पीछे पिंकी आ रही थी | आगे कुछ हड्डी के ढेर, कुछ अस्थि पिंजर
से पड़े हुए थे | उसके थोडा आगे देखने पर
उन्हें दिखा एक छोटा सा बच्चा जमीन पर ही पड़ा हुआ था | एकदम नवजात शिशु लग रहा था| एक
लकड़ी से टिका हुआ था वरना शायद फिसलकर नाले में चला गया होता | पास देखने पर मालूम चला की वो लड़की थी | पिंकी और बलराम ने उसे देखा और पिंकी को एक
क्षण भी नहीं लगा तय करने में | पिंकी ने उसे उठाकर अपने
अंचल से लगा लिया
बलराम : अरे, हम इसे कैसे ले जा सकते हैं
? कैसे पालेंगे ? इतना छोटा है इसका दूध कैसे होगा?
पिंकी जैसे बेसुध सी उस बच्चे को पोंछने
में लगी थी,बोली : जैसे होगा हो
जायेगा। आज नवरात्री के दिन मुझे मिली है ये इसे यहाँ नहीं छोड़ने वाली मैं। इसको हम पालेंगे।
पिकी को आज सुबह से ही कुछ अलग सा महसूस
हो रहा था। आज बड़े दिन बाद उसका मंदिर
जाने का भी मन हुआ था। वो बच्चे को सावधानी से लेकर साइकिल पर बैठ गयी। इस
समय कोई उसे देखता तो ये मानता ही नहीं कि वो पहली बार किसी बच्चे को गोद ली हुयी
है। लगता था जैसे सालों से कोई अपना बिछड़ा
हुआ आज मिला उसे। रात और गहराने लगी थी। तेज हवा चलने लगी थी। दोनों घर पहुंचे। मनोज और उषा भी उनका इंतजार करते करते घर के बाहर खड़े थे। एक बच्चा गोदी में देखकर वो चौंके पर
बलराम ने इशारा किया की वो समझाएगा सब।
दोनों अपने घर में घुस गए। अब पिंकी के सामने सबसे बड़ी समस्या बच्ची
का पेट भेरने की थी। झोपडी में ही थोडा दूध रखा
था, बच्चे को अच्छे से साफ़ करके पिंकी उसे चम्मच में भरकर दूध उसके मुंह में उड़ेल
रही थी। इधर बलराम बाहर मनोज और उषा को सारा मामला समझा रहा था। बच्चा दूध नहीं पी पा रहा था और बाहर
निकाल दे रहा था। बच्चा भूख से बिलबिलाने
लगा। तब तक मनोज , उषा और बलराम भी झोपडी में
आ गए थे।
सब को यही डर सता रहा था की बच्चे को उठा तो लिया पर इसका पेट नहीं भरा तो कैसे जीएगा ये। इधर पिंकी पागलों की तरह उस बच्चे के मुंह में दूध डालने की कोशिश कर रही थी। अचानक उसे पता नहीं क्या सूझा उसने बच्चे को अपने स्तनों से लगा लिया। कभी मां नहीं बनी तो स्तनों में दूध तो आना नहीं था फिर भी वो पागलों की तरह चिपकाये हुए थी बच्ची को अपने कलेजे से।तभी अचानक कुछ हुआ और उसके स्तनों में दूध आने लगा। बच्ची के मुंह में दूध गया तो उसका रोना भी बंद हुआ। पिंकी के तो आंसू बहने लगे। मनोज, बलराम और उषा भी हतप्रभ थे। उषा , पिंकी की पीठ पर हाथ फेरने लगी।
मनोज और बलराम बाहर निकल आये। जो कुछ हुआ था और
हो रहा था वह उनकी समझ से बाहर था। तभी दोनों का ध्यान ऊपर गया, बड़े जोर के बदल
घुमड़ आये थे। बादल गरजना शुरू हुए और तेज
बारिश शुरू हो गयी। मनोज और बलराम अन्दर आ
गए। अन्दर पिंकी बच्चे को दूध पिला रही थी। वो चारों खुश
थे। हंस रहे थे, रो रहे थे। तभी मनोज ने बोला : नवरात्री पर ही इस गाँव से कन्या चली
गयी थी इस गाँव का भाग्य साथ लेकर और नवरात्री पर ही एक कन्या भाग्य लेकर वापिस आई
है। लगता है श्राप गल गया। आपने अपनी सच्चाई, इमानदारी और समर्पण से
श्राप को काट दिया। इसका कुछ नाम सोचा है भाभी
?
पिंकी जिसकी पीठ थी सबकी तरफ ,थोडा सा मुड़ी
और बोली : हाँ , दुर्गा।
No comments:
Post a Comment