राहुल सांकृत्यायन की " किन्नर देश में " पढ़ी और बहुत ही प्रभावित हुआ हूँ। कुछ पंक्तियाँ जो ज्यादा पसंद आयीं वो नीचे हैं :
१ ) जैसे हम दूसरों के काम से लाभ उठाते हैं वैसे ही हमारे काम से दूसरे लाभ उठायें तो क्या हरज।
२ ) ढाई से डेढ़ नहीं छिपा करता।
३ ) पहाड़ में रोग दब जाता है, मैदान में दबा रहे तब है असली दबोचना।
४) जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म को अपना लिया उसे फिर चैन कहाँ आराम कहाँ।
५) मैं समझता हूँ की जाति के उत्थान में घुमक्कड़ों का सबसे बड़ा योगदान है।
६ )सच्चा घुमक्कड़ धर्म जाति देश काल सभी सीमाओं से मुक्त होता है।
७) एक घुमक्कड़ जब दुसरे घुमक्कड़ से मिलता है तो उसी मात्रा में आत्मीयता दिखाई देती जिस मात्रा में घुमक्कड़ी साधना में वह ऊपर पहुंच चूका है।
८) सच्चा घुमक्कड़ सर्व साधन संपन्न हो अपनी तपस्या से लेखक, कवि और चित्रकार के रूप में अपनी सेवाएं मानव समाज के सामने प्रस्तुत करता है।
9) मनुष्य अपने व्यक्तित्व को जितना फैलता है बाहरी घात प्रतिघात और वृत्त प्रवर्त्ती का उसके ऊपर उतना ही अधिक प्रभाव होता है।
१०) हर्ष की बात का उतना प्रभाव नहीं होता जितना विषाद की बात का।
१ ) जैसे हम दूसरों के काम से लाभ उठाते हैं वैसे ही हमारे काम से दूसरे लाभ उठायें तो क्या हरज।
२ ) ढाई से डेढ़ नहीं छिपा करता।
३ ) पहाड़ में रोग दब जाता है, मैदान में दबा रहे तब है असली दबोचना।
४) जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म को अपना लिया उसे फिर चैन कहाँ आराम कहाँ।
५) मैं समझता हूँ की जाति के उत्थान में घुमक्कड़ों का सबसे बड़ा योगदान है।
६ )सच्चा घुमक्कड़ धर्म जाति देश काल सभी सीमाओं से मुक्त होता है।
७) एक घुमक्कड़ जब दुसरे घुमक्कड़ से मिलता है तो उसी मात्रा में आत्मीयता दिखाई देती जिस मात्रा में घुमक्कड़ी साधना में वह ऊपर पहुंच चूका है।
८) सच्चा घुमक्कड़ सर्व साधन संपन्न हो अपनी तपस्या से लेखक, कवि और चित्रकार के रूप में अपनी सेवाएं मानव समाज के सामने प्रस्तुत करता है।
9) मनुष्य अपने व्यक्तित्व को जितना फैलता है बाहरी घात प्रतिघात और वृत्त प्रवर्त्ती का उसके ऊपर उतना ही अधिक प्रभाव होता है।
१०) हर्ष की बात का उतना प्रभाव नहीं होता जितना विषाद की बात का।
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