Sep 25, 2021

अबला

दिल्ली से मुंबई जाने वाली लोकमान्य तिलक ट्रेन जैसे ही ‘झाँसी’ स्टेशन पर रुकी जनरल बोगी के भीड़ भाड़ वाले डिब्बे में वो शादी शुदा जोड़ा घुस गया।  आदमी दुबला पतला लम्बा सा था और औरत नयी दुल्हन सी सजी धजी और लम्बा सा घूँघट काढ़े थी। चूँकि डब्बा पूरा भरा हुआ था इसलिए दोनों जमीन पर ही बैठ गए। आदमी कुछ गुस्से में लग रहा था लगातार बडबड़ा रहा था । 

आदमी: न, रहने का ठिकाना है न ढंग से खाने पीने का। अब तुझे कहाँ रखूँगा वहां छोटी सी खोली है। बस रहने के नाम पे कुछ दिन और रह लेती तो क्या बिगड़ जाता ? जैसे तैसे करके पैसे भेज रहा था न गाँव फिर भी इनको शहर आना है ।

औरत : मैंने थोड़ी न कहा था कुछ।

आसपास बैठे लोगों को इस नवदम्पति और उसकी कहानी में दिलचस्पी होने लगी थी। हर ट्रेन के जनरल डिब्बे की यही खासियत होती है की हर इन्सान की अपनी जिन्दगी में कितनी भी समस्याएं हों जैसे ही कोई दूसरा आदमी दिखता है, कुछ नयी समस्याओं के साथ तो इन्सान की दिलचस्पी उसी में हो जाती है। तो कोई खैनी रगड़ते हुए और कोई बीड़ी पीते हुए इसी दम्पति को घूरे जा रहा था।

पति पत्नी की बातचीत से समझ आ रहा था की दोनों के बीच किसी बात को लेकर के तनाव है और लोगों को इसे देखने में मजा आ रहा था ।

अगले स्टेशन ‘बीना’ पर ट्रेन रुकी तो आदमी पानी की बोतल लेकर पानी भरने उतर गया ।

फिर ट्रेन चल दी 5-7 मिनट में। सभी यात्री जो उतरे थे वापिस चढ़ गए ट्रेन में पर महिला के पति का कुछ ठिकाना नहीं था। पहले तो महिला को लगा की भीड़ भाड़ है आ ही रहा होगा। फिर घबराहट होने लगी। वो खिड़की के बाहर देखने लगी तब तक ट्रेन ने भी रफ़्तार पकड़ ली थी ।

आसपास के लोगों को अब इस कहानी में और महिला की बैचैनी में मजा सा आने लगा था ।एक कौतुहल सा सबको लग रहा था ।

कोई बोला : छूट तो नहीं गया वो स्टेशन पर?

दूसरा : मुझे तो चढ़ते नहीं ही दिखा था।

तीसरा : कोई हादसा तो नहीं हो गया ?

भीड़ में से किसी ने पूछा : मोबाइल नंबर है उसका?

पत्नी को याद आया कि मोबाइल तो था उसके पति के पास पर उसे नंबर जानने की कभी जरुरत नहीं पड़ी।

हमेशा ससुर या देवर अपने फ़ोन से बात करा दिया करते थे।

औरत : (सकुचाते हए ) नंबर तो नहीं है।

भीड़ : क्या पति का ही नंबर नहीं है ? तो देवी जी उन्हें ढूंढा कैसे जायेगा ?

औरत खामोश है, अपने पैरों के नाखून देख रही है ।

भीड़ : कहाँ जा रहे थे आप लोग ?

औरत : बम्बई ।

भीड़ : कुछ पता ठिकाना है वहां का या किसी का नंबर ?

औरत : (लाज से सकुचाते हुए ) मैं तो पहली बार जा रही थी बम्बई ।

भीड़ : अरे कुछ तो होगा ? कुछ कागज पत्तर या चिट्ठी विट्ठी ?

औरत को याद आया एक चिट्ठी थी जो देवर ने उसके पति को लिखी थी और उसके बैग में रखी थी ।  

औरत : हाँ, एक चिट्ठी है ।

भीड़ : दिखाईये , देखते हैं कुछ पता मालूम चले ।

अब औरत अजीब द्वंद्व में थी की अपने घर की चिट्ठी इन अजनबियों के हाथ में सौंपे की नहीं ? अगर नहीं देगी तो पति की खबर कैसे मिलेगी ?

औरत चिट्ठी निकाल कर एक नौजवान को देती है ।

नौजवान जोर जोर से चिट्ठी पढता है और पूरा डब्बा पूरे कौतुहल से चिट्ठी को सुनता है । चिट्ठी का सार ये है की महिला के देवर ने अपने बड़े भाई यानी की महिला के पति को लिखा था कि गाँव में इस बार खेती पूरी मारी गयी है । यहाँ अब बमुश्किल गुजारा हो रहा है । तुम्हारे भेजे पैसों से ही काम चलता है पर उसमे भी चार आदमियों (मां, बापू , भाभी और देवर ) का पेट पालना अब मुश्किल हो रहा है । हम दुसरे गाँव में मजदूरी ढूंढने जा रहे हैं तो भाभी की जिम्मेदारी यहाँ बूढ़े माता पिता पर डालना मुश्किल होगा । बाबू जी का कहना है की तुम जल्दी आकर भाभी को अपने साथ ले जाओ । हमको मालूम है की तुमने छः महीने बाद छठ पे भाभी को ले जाने का तय किया था पर अब यहाँ इतना समय निकलना भी मुश्किल है ।  

नौजवान (सबको सुनाते हुए ): चिठ्ठी से ये समझ में आ रहा है की इनकी आर्थिक स्थिति ख़राब है गाँव में और इसकी वजह से इनके पति को इन्हें बम्बई ले जाना पड़ रहा है मजबूरी में । जब ये लोग चढ़े थे ट्रेन में तब इनके पति के बडबडाने से ये समझ आता है की उनका मन था नहीं इन्हें ले जाने का क्यूँ की उनकी बम्बई में कुछ खास व्यवस्था है नहीं । 

भीड़ : फिर ?

नौजवान : मेरे विचार से इनके पति इनको छोड़ कर भाग गए हैं । उन्हें हिसाब किताब कुछ समझ नहीं आ रहा  था और उन्हें ये मालूम था की ये जिनके पास न पति का कुछ पता है न मोबाइल नंबर है उन्हें ढूंढ नहीं पाएंगी । 

भीड़ : अब इनका क्या होगा ?

भीड़ : होगा क्या पैसा लत्ता भी सब आदमी ही ले गया होगा ये तो वापिस भी नहीं जा पाएंगी । 

भीड़ : वो बेचारा भी क्या करता जब नहीं निभा पा रहा जिम्मेदारी तो कट लिया । 

भीड़ : इनको बम्बई में तो लोग बेच खायेंगे ।  (फूहड़ हंसी हँसते हुए )

महिला को तो जैसे काटो तो खून नहीं । उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था । आँखों के आगे अँधेरा सा दिख रहा था । सब लोग उसे ही घूर रहे थे उसकी चिट्ठी पढ़कर और उसकी परिस्थिति में लोगों के ऐसे घुस जाने से उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके सारे कपडे फाड़ दिए हों और उसे नंगा कर दिया हो । 

उसने बचपन में अपनी मां से द्रौपदी की कहानी सुनी थी जिसका भरे दरबार में चीर हरण हुआ था । आज उसे भी ऐसा ही कुछ लग रहा था ।  जिस तरह लोग अब उसे अबला जानकर घूर रहे थे उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका अस्तित्व सिमट कर बस मांस के एक टुकड़े जैसा हो गया है जिसे खाने के लिए गिद्धों की भीड़ जुटी हुयी है ।  द्रौपदी की रक्षा के लिए तो केशव आये थे यहाँ तो बस उसे दुशाशन ही दिख रहे थे । वो अपना मुँह घुटने में छिपा कर बैठी थी ऑंखें बंद कर के , ऐसा लग रहा था जैसे उसके आसपास जो लोग उसे घूर रहे थे उनकी परछाईयों का आकार धीरे धीरे बढ़ रहा है । सारी परछाईयाँ जीभ निकाल कर , लार टपकाते हुए उसके पास आती जा रही हैं 

वो अपने में ही सिमटी हुयी बैठी थी उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे तभी ट्रेन रुकी ‘भोपाल’ स्टेशन आया था । 

भीड़ में से कोई : भोपाल आ गया है ।  यहाँ ट्रेन थोडा ज्यादा देर रूकती है ।  यहीं उतर जाओ रेलवे पुलिस को बताओ सारा मामला, फिर देखो वो कुछ कर सकें तो । 

महिला ने अपना सामान समेटा और उठने लगी । अब उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे । एक अनजान सा डर उसे सता रहा था ।  आसपास बैठे लोग उसे आँखों से ही तौल रहे थे । 

इधर ट्रेन में चढ़ने वालों की भीड़ हल्ला ग्गुल्ला मचा रही थी । 

तभी एक नौजवान लोगों को धक्का देता हुआ अन्दर घुसा ।  उसकी नजर महिला पर पड़ी ।  ये उसी का पति था

वो डिब्बे के अन्दर आ गया जहाँ वो लोग पहले बैठे हुए थे । 

महिला ने उसे देखा तो ख़ुशी से चौंक गयी ।   

पति (लम्बी सांसे लेता हुआ ): अरे, पिछले स्टेशन पर ट्रेन चल दी थी तो स्लीपर डिब्बे में चढ़ गया था ।  अन्दर से आने का रास्ता था नहीं तो भोपाल आने का इन्तेजार कर रहा था ।  भोपाल आते ही भाग कर आया । 

महिला सिसक कर रोने लगी । 

पति : घबरा गयी होगी न तू ? थोडा तो तेरे लिए मैं भी डर गया था ।  पर अकेले बैठने से ये हुआ कि थोडा समय मिला सोचने का ।  वहां बैठे बैठे सोचता रहा कि इतनी भी बड़ी समस्या नहीं है तेरे जाने की । मैं तो खुद छठ के समय तुझे लाने का सोच रहा था । तेरा अचानक आने का सुना तो हडबडा गया, इसीलिए गुस्सा आ गया    अब तू चल ही रही है साथ में तो मिलकर गृहस्थी की गाडी पटरी पर ले आयेंगे । 

पत्नी का रोना ही बंद नहीं हो रहा था । 

आसपास बैठे लोगों को उस आदमी के आ जाने से एक झटका सा लगा था जैसे कोई फिल्म एक दुखद क्लाइमेक्स की तरफ जा रही हो फिर एक दम से हैप्पी एंडिंग आ जाये । उनके सारे खयाली पुलाव हवा में उड़ गए थे । 

औरत ने मुंह उठाकर सबकी और देखा तो पाया सभी लोग बगलें झाँक रहे थे ।