Oct 16, 2021

मां जो कभी १६ साल की लड़की थी

 इक बंद से घर में खुली हवादार खिड़की थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

पूरे घर में चिड़िया सी फुदकती रहती थी

त्यौहारों में एक नया ही रंग घोल देती थी

बाबा की दुलारी और भाइयों की लडैती थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

कभी बाबा की तम्बाकू खाने की नक़ल उतारती

कभी भैया के कपडे पहन इतराती

कभी पीछे से अम्मा को धप्पा बोल जाती थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

खेत की मेढ़ों पर सरपट दौड़ लगाती थी

जरा सी तारीफ पर फिर दिन भर इठलाती थी

दिन भर भागती फिरती फिर भी कभी न थकती थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

मां जब कहती कुछ काम सीख ले ससुराल में काम आएगा

तो बाबा से शिकायत लगाती थी

मां जब कहती लडको जैसे लक्षण हैं इसके

तो भैया के पीछे छिप जाती थी

मां जब कहती की ससुराल में नाक कटाएगी ये

तो जीभ चिढ़ा के भाग जाती थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

पौ फटते ही जग जाती और देर रात को सोती थी  

हंसती तो घंटो हंसती और रोती तो किसी भी बात पे रो देती थी

अपने दादू की शान और बाबा की जान हुआ करती थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

सबकी खाने पीने दवाईयों का पूरा ध्यान रखती थी

भैया जब शहर जाते तो फरमाईशें साथ भेज देती थी

भैया कुछ नहीं लायें तो मुंह फुलाकर बैठ जाती थी

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

कभी झटपट पेड़ पर चढ़ आम खाती थी

कभी छज्जे से कबूतर उड़ाया करती थी

साइकिल से पूरा गाँव नाप आती थी

बरसात में भीग के मोरों के साथ नाचती थी  

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी

मां आज भी दौड़ती भागती है

मां आज भी जल्दी जाग जाती है  

मां आज भी सबके खाने पीने का ख्याल रखती है

पर मां अब जिम्मेदारियों के तले दब गयी है

कमर उसकी थोड़ी सी झुक गयी है

चेहरे पे झुर्रियां पड़ने लगी हैं

नजर थोड़ी कमजोर होने लगी हैं

आंखें थोड़ी गड्डों   में जाने लगी हैं

उसकी उच्छंद सी चाल थकने लगी है

उन्मुक्त सी वो हंसी अब रुकने लगी है

घुटने में दर्द भी रहने लगा है

वो मां जो किसी मेहमान के आने का सुनकर

बस स्टैंड तक भाग कर जाती थी

वो मां आज फाटक पर बैठ कर रास्ता देखने लगी है

मां अब बदल गयी है

क्यूँ अब वो कोई जिद नहीं करती ?

क्यूँ अब वो किसी से रूठती नहीं है ?

क्यूँ वो अभी कुछ मांगती नहीं हैं ?

मां क्यूँ बदल गयी है

मुझे वही मां चाहिए

वही पुरानी वाली मां

मां जो कभी १६ साल की एक लड़की थी 

Sep 25, 2021

अबला

दिल्ली से मुंबई जाने वाली लोकमान्य तिलक ट्रेन जैसे ही ‘झाँसी’ स्टेशन पर रुकी जनरल बोगी के भीड़ भाड़ वाले डिब्बे में वो शादी शुदा जोड़ा घुस गया।  आदमी दुबला पतला लम्बा सा था और औरत नयी दुल्हन सी सजी धजी और लम्बा सा घूँघट काढ़े थी। चूँकि डब्बा पूरा भरा हुआ था इसलिए दोनों जमीन पर ही बैठ गए। आदमी कुछ गुस्से में लग रहा था लगातार बडबड़ा रहा था । 

आदमी: न, रहने का ठिकाना है न ढंग से खाने पीने का। अब तुझे कहाँ रखूँगा वहां छोटी सी खोली है। बस रहने के नाम पे कुछ दिन और रह लेती तो क्या बिगड़ जाता ? जैसे तैसे करके पैसे भेज रहा था न गाँव फिर भी इनको शहर आना है ।

औरत : मैंने थोड़ी न कहा था कुछ।

आसपास बैठे लोगों को इस नवदम्पति और उसकी कहानी में दिलचस्पी होने लगी थी। हर ट्रेन के जनरल डिब्बे की यही खासियत होती है की हर इन्सान की अपनी जिन्दगी में कितनी भी समस्याएं हों जैसे ही कोई दूसरा आदमी दिखता है, कुछ नयी समस्याओं के साथ तो इन्सान की दिलचस्पी उसी में हो जाती है। तो कोई खैनी रगड़ते हुए और कोई बीड़ी पीते हुए इसी दम्पति को घूरे जा रहा था।

पति पत्नी की बातचीत से समझ आ रहा था की दोनों के बीच किसी बात को लेकर के तनाव है और लोगों को इसे देखने में मजा आ रहा था ।

अगले स्टेशन ‘बीना’ पर ट्रेन रुकी तो आदमी पानी की बोतल लेकर पानी भरने उतर गया ।

फिर ट्रेन चल दी 5-7 मिनट में। सभी यात्री जो उतरे थे वापिस चढ़ गए ट्रेन में पर महिला के पति का कुछ ठिकाना नहीं था। पहले तो महिला को लगा की भीड़ भाड़ है आ ही रहा होगा। फिर घबराहट होने लगी। वो खिड़की के बाहर देखने लगी तब तक ट्रेन ने भी रफ़्तार पकड़ ली थी ।

आसपास के लोगों को अब इस कहानी में और महिला की बैचैनी में मजा सा आने लगा था ।एक कौतुहल सा सबको लग रहा था ।

कोई बोला : छूट तो नहीं गया वो स्टेशन पर?

दूसरा : मुझे तो चढ़ते नहीं ही दिखा था।

तीसरा : कोई हादसा तो नहीं हो गया ?

भीड़ में से किसी ने पूछा : मोबाइल नंबर है उसका?

पत्नी को याद आया कि मोबाइल तो था उसके पति के पास पर उसे नंबर जानने की कभी जरुरत नहीं पड़ी।

हमेशा ससुर या देवर अपने फ़ोन से बात करा दिया करते थे।

औरत : (सकुचाते हए ) नंबर तो नहीं है।

भीड़ : क्या पति का ही नंबर नहीं है ? तो देवी जी उन्हें ढूंढा कैसे जायेगा ?

औरत खामोश है, अपने पैरों के नाखून देख रही है ।

भीड़ : कहाँ जा रहे थे आप लोग ?

औरत : बम्बई ।

भीड़ : कुछ पता ठिकाना है वहां का या किसी का नंबर ?

औरत : (लाज से सकुचाते हुए ) मैं तो पहली बार जा रही थी बम्बई ।

भीड़ : अरे कुछ तो होगा ? कुछ कागज पत्तर या चिट्ठी विट्ठी ?

औरत को याद आया एक चिट्ठी थी जो देवर ने उसके पति को लिखी थी और उसके बैग में रखी थी ।  

औरत : हाँ, एक चिट्ठी है ।

भीड़ : दिखाईये , देखते हैं कुछ पता मालूम चले ।

अब औरत अजीब द्वंद्व में थी की अपने घर की चिट्ठी इन अजनबियों के हाथ में सौंपे की नहीं ? अगर नहीं देगी तो पति की खबर कैसे मिलेगी ?

औरत चिट्ठी निकाल कर एक नौजवान को देती है ।

नौजवान जोर जोर से चिट्ठी पढता है और पूरा डब्बा पूरे कौतुहल से चिट्ठी को सुनता है । चिट्ठी का सार ये है की महिला के देवर ने अपने बड़े भाई यानी की महिला के पति को लिखा था कि गाँव में इस बार खेती पूरी मारी गयी है । यहाँ अब बमुश्किल गुजारा हो रहा है । तुम्हारे भेजे पैसों से ही काम चलता है पर उसमे भी चार आदमियों (मां, बापू , भाभी और देवर ) का पेट पालना अब मुश्किल हो रहा है । हम दुसरे गाँव में मजदूरी ढूंढने जा रहे हैं तो भाभी की जिम्मेदारी यहाँ बूढ़े माता पिता पर डालना मुश्किल होगा । बाबू जी का कहना है की तुम जल्दी आकर भाभी को अपने साथ ले जाओ । हमको मालूम है की तुमने छः महीने बाद छठ पे भाभी को ले जाने का तय किया था पर अब यहाँ इतना समय निकलना भी मुश्किल है ।  

नौजवान (सबको सुनाते हुए ): चिठ्ठी से ये समझ में आ रहा है की इनकी आर्थिक स्थिति ख़राब है गाँव में और इसकी वजह से इनके पति को इन्हें बम्बई ले जाना पड़ रहा है मजबूरी में । जब ये लोग चढ़े थे ट्रेन में तब इनके पति के बडबडाने से ये समझ आता है की उनका मन था नहीं इन्हें ले जाने का क्यूँ की उनकी बम्बई में कुछ खास व्यवस्था है नहीं । 

भीड़ : फिर ?

नौजवान : मेरे विचार से इनके पति इनको छोड़ कर भाग गए हैं । उन्हें हिसाब किताब कुछ समझ नहीं आ रहा  था और उन्हें ये मालूम था की ये जिनके पास न पति का कुछ पता है न मोबाइल नंबर है उन्हें ढूंढ नहीं पाएंगी । 

भीड़ : अब इनका क्या होगा ?

भीड़ : होगा क्या पैसा लत्ता भी सब आदमी ही ले गया होगा ये तो वापिस भी नहीं जा पाएंगी । 

भीड़ : वो बेचारा भी क्या करता जब नहीं निभा पा रहा जिम्मेदारी तो कट लिया । 

भीड़ : इनको बम्बई में तो लोग बेच खायेंगे ।  (फूहड़ हंसी हँसते हुए )

महिला को तो जैसे काटो तो खून नहीं । उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था । आँखों के आगे अँधेरा सा दिख रहा था । सब लोग उसे ही घूर रहे थे उसकी चिट्ठी पढ़कर और उसकी परिस्थिति में लोगों के ऐसे घुस जाने से उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके सारे कपडे फाड़ दिए हों और उसे नंगा कर दिया हो । 

उसने बचपन में अपनी मां से द्रौपदी की कहानी सुनी थी जिसका भरे दरबार में चीर हरण हुआ था । आज उसे भी ऐसा ही कुछ लग रहा था ।  जिस तरह लोग अब उसे अबला जानकर घूर रहे थे उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका अस्तित्व सिमट कर बस मांस के एक टुकड़े जैसा हो गया है जिसे खाने के लिए गिद्धों की भीड़ जुटी हुयी है ।  द्रौपदी की रक्षा के लिए तो केशव आये थे यहाँ तो बस उसे दुशाशन ही दिख रहे थे । वो अपना मुँह घुटने में छिपा कर बैठी थी ऑंखें बंद कर के , ऐसा लग रहा था जैसे उसके आसपास जो लोग उसे घूर रहे थे उनकी परछाईयों का आकार धीरे धीरे बढ़ रहा है । सारी परछाईयाँ जीभ निकाल कर , लार टपकाते हुए उसके पास आती जा रही हैं 

वो अपने में ही सिमटी हुयी बैठी थी उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे तभी ट्रेन रुकी ‘भोपाल’ स्टेशन आया था । 

भीड़ में से कोई : भोपाल आ गया है ।  यहाँ ट्रेन थोडा ज्यादा देर रूकती है ।  यहीं उतर जाओ रेलवे पुलिस को बताओ सारा मामला, फिर देखो वो कुछ कर सकें तो । 

महिला ने अपना सामान समेटा और उठने लगी । अब उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे । एक अनजान सा डर उसे सता रहा था ।  आसपास बैठे लोग उसे आँखों से ही तौल रहे थे । 

इधर ट्रेन में चढ़ने वालों की भीड़ हल्ला ग्गुल्ला मचा रही थी । 

तभी एक नौजवान लोगों को धक्का देता हुआ अन्दर घुसा ।  उसकी नजर महिला पर पड़ी ।  ये उसी का पति था

वो डिब्बे के अन्दर आ गया जहाँ वो लोग पहले बैठे हुए थे । 

महिला ने उसे देखा तो ख़ुशी से चौंक गयी ।   

पति (लम्बी सांसे लेता हुआ ): अरे, पिछले स्टेशन पर ट्रेन चल दी थी तो स्लीपर डिब्बे में चढ़ गया था ।  अन्दर से आने का रास्ता था नहीं तो भोपाल आने का इन्तेजार कर रहा था ।  भोपाल आते ही भाग कर आया । 

महिला सिसक कर रोने लगी । 

पति : घबरा गयी होगी न तू ? थोडा तो तेरे लिए मैं भी डर गया था ।  पर अकेले बैठने से ये हुआ कि थोडा समय मिला सोचने का ।  वहां बैठे बैठे सोचता रहा कि इतनी भी बड़ी समस्या नहीं है तेरे जाने की । मैं तो खुद छठ के समय तुझे लाने का सोच रहा था । तेरा अचानक आने का सुना तो हडबडा गया, इसीलिए गुस्सा आ गया    अब तू चल ही रही है साथ में तो मिलकर गृहस्थी की गाडी पटरी पर ले आयेंगे । 

पत्नी का रोना ही बंद नहीं हो रहा था । 

आसपास बैठे लोगों को उस आदमी के आ जाने से एक झटका सा लगा था जैसे कोई फिल्म एक दुखद क्लाइमेक्स की तरफ जा रही हो फिर एक दम से हैप्पी एंडिंग आ जाये । उनके सारे खयाली पुलाव हवा में उड़ गए थे । 

औरत ने मुंह उठाकर सबकी और देखा तो पाया सभी लोग बगलें झाँक रहे थे । 

 

 

 

 

 

Aug 24, 2021

अनरई की ईद

 बात है २००४ की, तारीख १२ नवम्बर ।

कई सालों में ऐसा संयोग बनता है जब दिवाली और ईद आसपास पड़ रही हों । दिवाली थी १२ नवम्बर की और ईद थी १३ नवम्बर की। धारावी की उस छोटी सी चाल में बहुत रौनक थी । ८ साल का अनवर अपने अब्बू के साथ उस चाल में रहता था। अनवर की मां नहीं थी, बहुत छोटी उम्र में ही मां का देहांत हो गया था। उसके अब्बू ने ही उसे पाला था। अनवर के अब्बू एक फैक्ट्री में काम करते थे। अनवर की मां के जाने के बाद वो दोनों ही एक दुसरे का सहारा थे । अनवर के अब्बू भी कोशिश करते की जहाँ तक हो सके अनवर को मां की कमी ना महसूस होने दें । अनवर के अब्बू भरसक प्रयास करते अब्बू की सारी ख्वाहिशें पूरी करने की पर थोड़ी तंगी जिन्दगी में बनी ही रहती । 

अनवर अपने बाबा के पास आया और बोला: बाबा आपको मालूम है जो मेरा दोस्त है न अमित जो बाजू वाली चाल में रहता है ?

अब्बू : हाँ

अनवर: उसके घर इस बार दिवाली नहीं मना रहे बहुत उदास है वो।

अब्बू : क्यूँ नहीं मना रहे दिवाली ?

अनवर : अरे वो बोल रहा है उसके दादा जी ख़तम हो गए थे न कुछ दिन पहले तो दिवाली नहीं मनाएंगे इस साल। अनरई की दिवाली रहेगी ये वाली। अब्बू ये अनरई क्या होता है?

अब्बू : देखो जब हिन्दुओं में किसी का कोई अपना मर जाता है तो उसकी याद में एक साल तक कोई त्यौहार नहीं मनाते इसी को अनरई कहते हैं।

अनवर : ओह्ह ।। तो ये केवल हिन्दुओं में होता है ?

अब्बू : हाँ, बेटा। होता तो हिन्दुओं में है पर ये तो दुःख है ना ये तो किसी का भी बाँट सकते हैं । अच्छा चलो मुझे काम पे जाना है तुम अन्दर से बंद कर लेना और पढाई करना ।

अनवर : अब्बू पढाई तो मैं कर लूँगा पर कल आपको मालूम है न क्या है?

अब्बू : हाँ कल ईद है।

अनवर : आपने वादा किया था इस साल ईद की ईदी के रूप में मुझे नई साइकिल दिलाएंगे । मेरे सब दोस्तों के पास साइकिल है और मैं ऐसे ही उनके पीछे पीछे दौड़ता रहता हूँ ।

अब्बू (सोचते हुए) : हाँ बेटा बोला तो था, पर ...

अनवर : अब्बू, पर-वर कुछ नहीं चलेगा । आपको दिलानी पड़ेगी आपने मुझे पक्का वाला प्रॉमिस किया था।

अब्बू : ठीक है देखता हूँ।

शाम को अनवर के अब्बू जब काम से निकले तो बहुत उदास थे। अनवर कई दिनों से साइकिल की जिद कर रहा था और इधर उसके अब्बू के पास पैसा था नहीं कुछ हाथ में। तनख्वाह मिलने में भी समय था। आज मेनेजर से एडवांस माँगा तो उसने भी ये कहके पल्ला झाड लिया की यार दिवाली ईद दोनों साथ में है एक को एडवांस देंगे तो सब मांगेंगे, किसको मना करेंगे। अनवर के अब्बू को समझ नहीं आ रहा था की क्या समझाएगा अनवर को। ऐसे तो अनवर अपनी उम्र के बच्चों से कुछ ज्यादा समझदार था । कभी भी कुछ नहीं मांगता था वो, मां की मौत हुयी तब लगभग 4 साल का था पर जैसे एकदम से बड़ा हो गया था । पर इस बार साइकिल के लिए कुछ ज्यादा ही जिद पकड़ कर बैठा था। घर तो जाना ही होगा ये सोचकर अनवर के अब्बू ने कदम बढ़ाये भारी मन से। अनवर से क्या कहेगा कुछ समझ नहीं आ रहा था ।

चाल तक पहुंचा ही था की देखा कि अनवर अपने दोस्त अमित के साथ अपनी चाल के बाहर बैठा था। अपने अब्बू को देखते ही उसकी आँखों में चमक आई फिर उन्हें खाली हाथ देख वो समझ गया की क्या मामला हुआ होगा।  

अब्बू : अनवर वो तुम्हारी साइकिल ..

अनवर (बीच में टोकते हुए ): अब्बू मैं आपको बोलने ही वाला था तब तक आप चले गए।

अब्बू : क्या बोलने वाले थे?

अनवर : यही की अमित के दादाजी ख़तम हुए हैं तो मैं भी तो उनको दादू बोलता था और वो मुझे अमित जैसे ही प्यार करते थे तो अगर उसके घर अनरई की दिवाली है तो हमारी ईद भी तो अनरई की होनी चाहिए न। अच्छा हुआ आप साइकिल नहीं लाये वरना अमित को भी बुरा लगता न। मैं अकेला थोड़ी न साइकिल चलाता। अब जब अमित के घर माहौल थोडा ठीक होगा तभी लूँगा मैं साइकिल । 

अनवर के अब्बू ने अनवर को गले लगा लिया । सोच रहा था इतना समझदार हो गया अनवर । ये बिना मां का बेटा । ये लड़का जो पिछले छह महीने से बस ईद का इन्तेजार कर रहा था साइकिल लेने के लिए और आज चुपचाप मान गया। इसका बहाना तो देखो कितना संवेदनशील हो गया है ये । उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे । वो अमित और अनवर के साथ बैठ गया बरामदे में उस “अनरई की ईद और दिवाली ” को मनाने।  

Jul 31, 2021

प्रेमचंद के जन्मदिन पर

मैं हिंदी भाषी क्षेत्र से जुड़ा हुआ हूँ। जब आप ऐसे क्षेत्र से आते हैं और लिखने पढ़ने में थोड़ी भी रुचि रखते हैं तो आप प्रेमचंद तक पहुंच जाते हैं और फिर वहीं ठहर जाते हैं। फिर आपका नजरिया प्रेमचंदमय हो जाता है। आप जो पढ़ते हैं उसे प्रेमचंद से ही तुलना करते हैं। बूढ़ी काकी, मंत्र, कफ़न ऐसी कहानियाँ हैं जो आपको इमोशनल कर देती हैं। प्रेमचंद का सारा साहित्य आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद पढ़कर ही मैंने जाना और माना था कि किरदार हीरो या विलन नहीं होते, वो बस किरदार होते हैं। ये भी कहना प्रासंगिक है कि अगर मैं कभी शरत चंद्र को न पढ़ता तो ये प्रेमचंद वाला हैंगओवर ताउम्र चलता। (प्रेमचंद के जन्मदिवस पर)

May 29, 2021

ये रात

 ये रात इतनी स्याह अँधेरी सी क्यों है,

ये कजरारी रात इतनी गहरी सी क्यों है,

तुम तो कहते थे की सुबह आने ही वाली है,

तुम तो कहते रात बस जाने ही वाली है,

झूठ तुम इतना कहते क्यों थे?

तुम तो साथ देने आये थे इस काली रात में,

तुम खुद रात में खो गए क्यों हो?

बिन तुम इस  रात को बिताना,

जैसे अंधे कुएं में उतर जाना क्यों है?

मेरी सांस की आवाज भी मुझे सुनाई देती है,

इस रात  में  इतनी  ख़ामोशी  क्यों  है ?

जानते  हो    मुझे  अंधेरों  से  डर  लगता  है,

फिर  अंधेरों  में  ही  मुझसे  दामन  छुड़ाना  क्यों  है ?

एक  पल  भी    चल  पाएंगे  तुम्हारे  बिना,

फिर  अपने  अपने  रस्ते  जाना  क्यों  है ?

तुम  कहते  थे  कभी  रास्ता  भूलो  तो  ध्रुव  तारे  को  देख  लेना

तुम  उस  तारे  को अपने साथ  ले  गए  क्यों  हो ?

तुम  जो  साथ थे तो अंधेरों में जुगनू भी  रोशन थे ,

अब  ये  रात  अमावस  सी  भयावह   क्यों  है ?


May 17, 2021

And the storm wins

When the storm arrives, common people look for shade. They wait for the storm to pass. That is the right thing to do for them. But some people chose to wither the storm for their loved ones. They go out in the storm to protect their people. They took on the storm. They challenge the mighty storm. They put up a fierce fight. The world calls them mad because they are defying the logic, also because they are not following popular opinions.  Sometimes these mad people won but mostly the storm wins. This time the storm has won. 😞😞

May 9, 2021

And the going gets tough

अजीब सा माहौल हो गया है। जहां जिस किसी दोस्त या रिश्तेदार से बात कर रहे हैं वो परेशान है। हर तरफ बुरी खबरों की बाढ़ आई हुई है। मृत्यु जैसे आम सी हो गई है। मौतो का कहीं कोई हिसाब भी नहीं हो रहा है। कोई भी अस्पताल में एडमिट हो रहा है तो दिमाग मे नकारात्मक विचार आ रहे हैं। कहीं कोई सिस्टम, सरकार कुछ नहीं है। लोग खुद ही दौड़ भाग रहे हैं। एक जगह के लिए प्रार्थना कर रहे हैं तो मालूम पड़ता है कहीं और प्राथनाएं  कम पड गयी हैं।आशा है कि कहीं तो अंत आएगा इस सबका।।

May 5, 2021

सावन अँखियाँ

 वंदना और सौरभ फॅमिली कोर्ट से बाहर निकले तो एक दूसरे की तरफ देखा भी नही। न कोई अलविदा, न कोई 'अपना ध्यान रखना' या 'हम दोस्त तो रह सकते हैं' जैसी दिलासा । बस जैसे दो अजनबी एक यात्रा ख़तम होने पर अपनी अपनी मंजिल आने पे उतर जाते हैं । इनके बीच तो उतना भी शिष्टाचार नहीं बचा था बची थी तो बस कड़वाहट । वंदना पापा की कार में पीछे बैठी तो पिछले ०३ साल उसकी आँखों के सामने एक फिल्म की तरह घूम गए ।

वंदना

वंदना एक बहुत बड़े और असाधारण से परिवार में जन्मी साधारण सी लड़की थी । पिताजी का राजनीति में अच्छा रसूख था । भाई नामी लेखक था । ऐसे सब कुछ था उसके पास, पैसा- ऊंची जाति- नामी खानदान ।

जैसे कई बार होता है की कई बड़े पेड़ों के साये में छोटे मोटे पौधे ढंग से पनप नहीं पाते । ऐसा ही कुछ वंदना के साथ हुआ था । वो इतने बड़े लोगों के बीच अपना वजूद तलाश ही नहीं पायी । उसको अपना घर एक सोने का पिंजरा लगता जिसमे सुविधाएँ तो सब थीं पर थीं पिंजरे के अंदर ।

जब ग्रेजुएशन कर रही थी तब उसकी जिंदगी में तपन आया था और तब उसे पहली बार अपने होने का और अपने जीने का अहसास हुआ था । कितने सपने देखे थे दोनों ने मिलके । वंदना को बहुत कुछ नहीं चाहिए था जिंदगी से बस थोड़ा प्यार और थोड़ी आजादी चाहिए थी जो उसके घर में नहीं मिल पायी थी  पर तपन ने दी थी । जब इंसान प्यार में होता है तो प्रैक्टिकल थोड़ा कम और इमोशनल थोड़ा ज्यादा हो जाता है ।

तपन 

तपन बेपरवाह सा, आज में जीने वाला लड़का था । कोई नियम कानून नहीं मानता था । तपन के साथ  समस्या यही थी की वो किसी भी चीज को सीरियसली नहीं लिया करता था न जॉब को, न पैसे को । 

जब वंदना ने अपने और तपन के बारे में घर पे बताया तो बवाल तो होना ही था हुआ भी । काफी हल्ला गुल्ला हुआ । वो काफी रोई , मिन्नतें की पर पापा नहीं पिघले उलटे उसपे प्रतिबन्ध लगा दिए गए ।  पापा को बेटी की ख़ुशी से ज्यादा अपने नाम ख़राब होने का डर था । 

उसने बड़े भैया से तपन से बस एक बार मिल लेने बोला पर बड़े भैया तपन से मिलकर और ज्यादा खिलाफ हो गए इस रिश्ते के । उन्हें तपन अपनी ही दुनिया में खोया सा लगा ।

विकास भैया : छोटी मैं मिला था उस लड़के से यार । वो एकदम जिम्मेदार टाइप का नहीं है । कुछ प्लान नहीं किया है फ्यूचर का । किसी इंसान की जिम्मेदारी उठाने लायक है ही नहीं वो । तेरा नुकसान ही रहेगा जिंदगी भर ।

वंदना  : भैया प्यार में भी नफ़ा नुक्सान देखते हैं क्या?

विकास भैया : शादी में देखते हैं । प्यार अँधा होता है , आदर्शवादी होता है पर जिंदगी तर्कों पे चलती है।

जिस घर में लड़की के अफेयर का मामला उठ जाता है फिर घर वालों को वो लड़की बोझ लगने लगती है । उन्हें लगता है जल्दी से कैसे इसे ठिकाने लगाएं । वंदना और तपन की कहानी सामने आने के बाद हाथों हाथ वंदना के लिए एक आईएएस लड़का ढूंढ लिया गया । लड़का अनाथ था उसे एक बड़ा परिवार मिला और वंदना को एक आईएएस पति सौरभ । वंदना को अपनी कहानी फिल्मी लगती थी पर उसे पता नहीं था की जिंदगी कभी फिल्मी नहीं होती ।

सौरभ ”Self-Made” टाइप लड़का था । कम उम्र में ही माता पिता को खो चुका था । बहुत मेहनत से ये मुकाम पाया था । वो काफी कम बोलता था । ज्यादातर अपने में ही रहता । पढता रहता, लिखता रहता । एक अनाथ बच्चों के NGO से जुड़ा हुआ था तो नौकरी के अलावा अधिकांश समय वहीं बिताता ।

वंदना अपने घर की जेल से निकल कर एक दूसरी जेल में आ गयी । उसमे और सौरभ में बहुत अंतर था । सौरभ ज्यादातर समय काम में व्यस्त रहता । फिर समय होता तो NGO चला जाता । वंदना ने भी शुरू शुरू में उसके NGO में जाना शुरू किया पर जल्दी ही वो बोर हो गयी । सौरभ की ऑफिसियल पार्टीज में भी उसे अपने घर की पार्टियों जैसी ही फीलिंग आती । जब आप अंदर से खुश नहीं होते हैं तो छोटी छोटी ऊपरी खुशियां आपको खुश नहीं रख पातीं । वंदना को चाहिए था कोई बात करे । उसका हाल जाने । अपना हाल सुनाये । उसको सौरभ के किसी दोस्त ने बताया था की सौरभ किसी को पसंद करता था और उसकी मौत ने सौरभ के सारे इमोशन सुखा दिए हैं । डेढ़ साल बाद उसकी बेटी हुयी । कितनी सुन्दर थी, कितनी प्यारी सी ऑंखें हरे रंग की । वंदना की घसीटती हुयी जिंदगी जैसे दौड़ने लगी । वंदना की जिंदगी का केंद्र बन गयी वो ।

फिर ०४ साल बाद उसकी जिंदगी में वो दिन आया जिसे वो चाह के भी भुला नहीं सकती कभी । वो अपनी माँ के घर आयी हुयी थी । बच्चे खेल रहे थे । खेलते खेलते बच्चे बालकनी की रेलिंग के पास चले गए । वंदना ने आवाज भी दी की थोड़ा दूर खेलो रेलिंग से । तभी एक थड की आवाज हुयी । वंदना और उसकी माँ भागते हुए आये तो देखा की प्रिशा रेलिंग से फिसल कर नीचे गिरी पड़ी है और खून में लथपथ है ।

तुरंत उसे लेकर अस्पताल भागा गया सौरभ भी आ गया ।

डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की उसे बचाने की पर बहुत खून बह जाने से उसे बचा न सके । वंदना खबर सुन के बेहोश हो गयी । जब होश आया तब अपने घर में थी हाल में आकर देखा की प्रिशा की बॉडी रखी हुयी है । वो आखिरी बार अपनी बेटी को अपनी गोदी में भरने आयी, उसकी ऑंखें देखने आयी पर ये देख कर चौंक गयी की आँखों की जगह पर रुई ठुंसी हुयी है । उसने भैया की तरफ देखा तो वो बोले की सौरभ ने प्रिशा की ऑंखें डोनेट कर दी हैं ।

वंदना के जैसे सारे शरीर में आग लग गयी । जिंदगी भर की कड़वाहट उसके दिमाग में चली गयी जैसे । कोई इतना निष्ठुर, इतना क्रूर, इतना मतलबी कैसे हो सकता है? अपनी बेटी के मरने पे कौन ये सोच पाता है? अपनी महानता का ढिंढोरा पीटने में कोई इतना अँधा कैसे हो सकता है की अपनी मरी हुयी बेटी की ऑंखें निकलवा दे? वंदना को लगा जैसे उसका सर फट जायेगा ।

कुछ दिन शोक में होने के बाद वंदना ने जो पहला काम किया वो था तलाक की अर्जी देने का । अब कुछ बचा नहीं था उन दोनों के बीच । जो रिश्ता असल जिंदगी में मर चुका था उसका कागजों पे भी मरना जरुरी था । प्रिशा की मौत के बाद से दोनों में कोई बातचीत भी नहीं हुयी थी । आखिर वो दिन आ गया जब दोनों अलग हो गए ।

वर्तमान

यादों की ये रील और लम्बी चलती पर तभी घर आ गया । इसी बीच वंदना को तपन के बारे में एक दोस्त से मालूम पड़ा था । नौकरी में आ गया था वो । सुना था एक लड़की गोद ले ली है उसने । तपन का नंबर निकाल कर उसे एक-दो बार फ़ोन भी किया तपन ने उसे बहुत हिम्मत बँधायी थी । एक दिन उसका मैसेज आया की कल फ्री हो तो घर आओ एक खास ओकेजन है । बेटी से भी मिल लेना । वंदना कल जाना नहीं चाहती थी क्यूंकि कल प्रिशा की पहली पुण्यतिथि थी फिर उसकी एक सहेली ने समझाया की जिन तारीखों और जगहों से बुरी यादें जुडी होती हैं उन्हें भूलने का सबसे बढ़िया तरीका है कुछ नया उन्ही तारीखों और जगहों पे कर लेने का । यही सोचकर वंदना शाम को तपन के घर गयी । तपन ने दरवाजा खोला ।

वंदना: कैसे हो? सुना है बहुत mature टाइप हो गए हो । कोई बच्ची adopt  कर ली है ? कहाँ है वो ?

तपन: बस "बदला न अपने आप को, जो थे वही रहे । मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे । " बेटी केक रेडी कर रही है ।

वंदना: क्या बात है .. आज क्या मौका है वैसे?

तपन: मौका बहुत खास है। मैंने जब बेटी को गोद लिया था तब इसकी ऑंखें नहीं थीं । मैंने बहुत ढूंढा पर इसका रेयर ब्लड ग्रुप होने की वजह से कहीं कुछ नहीं मिल पा रहा था। ऐसे भी अपने देश में अंगदान का इतना कोई माहौल नहीं है फिर लास्ट ईयर मुझे मालूम पड़ा की एक बच्ची की मौत हुयी है और उसके पिता उसकी आंखे दान कर रहे हैं । सोच यार किस तरह का आदमी होगा वो जो अपनी बेटी की मौत के समय भी किसी दूसरे इंसान के बारे में सोच सकता है? इतनी हिम्मत कैसे आयी होगी उसमे?

वंदना (लड़खड़ाते हुए) : कौन था वो आदमी ?

तपन : ऐसे तो नाम मालूम नहीं पड़ता पर मुझे कैसे भी एक बार जानना था ऐसे इंसान के बारे में । कोई सौरभ नाम का था । आईएएस था । मैंने उस इंसान को इज्जत देने के लिए अपनी बेटी का नाम उसी इंसान की बेटी के नाम पे रखा है ।

तभी उसकी बेटी बाहर आयी ।

तपन: आओ प्रिशा । आंटी को हेलो बोलो ।

वंदना की नजर उस बच्ची पर पड़ी वही कद, वही उम्र और एकदम वही हरी ऑंखें ।

वंदना को जैसे काटो तो खून नहीं उसे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने बहुत झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया हो। जैसे किसी ने सर्दी की सुबह में चेहरे पे ठंडा पानी फेंक दिया हो । वो आज तक सौरभ को स्वार्थी समझती थी अब उसे समझ आया था की मतलबी तो वो थी । उसने अपने से बाहर कभी सोचा ही नहीं किसी के लिए कुछ ।

तपन: अब सब कुछ है हमारे पास बस तुम्हारी कमी है तुम आ जाओ।

वंदना ने प्रिशा को गले लगा लिया उसकी आँखों से आंसू बहने लगे आंसू दुःख के, पश्चाताप के।

 

 

May 3, 2021

तेहरी

 आकाश नया नया अपनी बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ था। जैसा की हर भारतीय की आदत होती है उसने भी सबसे पहले अपना पडोसी कौन है ये पता कराया। ये जानकर बहुत दुःख हुआ उसे की एक मुस्लिम परिवार उसके बगल में रहता है । आबिदा और शहाना की नेमप्लेट लगी थी दरवाजे पे । नेमप्लेट देखते ही उसका मूड ख़राब हो गया।  उसने बहुत सी बातें सुन रखीं थीं 'इन ' लोगों के बारे में  । कोई कहता था की बहुत गंदगी से रहते हैं ये लोग । कोई कहता बातचीत का तरीका नहीं आता इन लोगों को। उसने तय कर लिया था की वो एक दम बातचीत नहीं रखेगा इन लोगों से ।उसकी पत्नी प्रेगनेंसी के कारण मायके गयी हुयी थी। आकाश अपने काम से काम रखता ।कभी दरवाजा खोलते बंद करते पडोसी से सामना हो जाता तो वो कटने की कोशिश करता । एक दिन अचानक दरवाजे पे नॉक हुयी उसने खोला तो देखा उसका पडोसी आबिद था ।

आबिद: आप नए आये हैं तो कई दिन से वाइफ आपको invite  करने का बोल रही थी ।

आकाश : उसकी जरुरत नहीं है ।

आबिद: अरे आईये न वाइफ ने 'तेहरी' बनायीं है।  

आकाश : प्लीज आप जिद मत कीजिये मेरा एक दम मन नहीं है । मेरा थोड़ा धर्म का मामला है आप माइंड मत कीजियेगा।

आबिद शायद कुछ कुछ समझ गया था वो कुछ बोला नहीं और चला गया ।

अंदर आकाश आया तो थोड़ा उसे ख़राब लग रहा था की आबिद से रूडली बात की, पर लगा की हमेशा के लिए झंझट ख़तम हुआ ।उसे तेहरी कभी अच्छी भी नहीं लगी थी ।

कुछ दिनों बाद सब जगह कोरोना फ़ैल गया और आकाश भी इससे अछूता नहीं रह सका ।उसको डॉक्टर ने होम आइसोलेशन की सलाह दी पर उसका बुखार टूट ही नहीं रहा था ।मेड पहले ही आना बंद कर चुकी थी अब खाने की समस्या थी। १-२ दिन आकाश ने एक होटल में फ़ोन करके कुछ कुछ मंगवा लिया इसके बाद वो खाना भी आकाश के गले से उतरना मुश्किल हुआ ।

आज दिन भर से आकाश भूखा था क्यूंकि कई होटलों ने उसकी कॉलोनी में खाना भेजना बंद कर दिया था covid  की वजह से ।उसने फोन साइलेंट करके साइड में पटक दिया और भूखा ही सो गया । शाम हो गयी ।आकाश की हालत ख़राब होने लगी भूख और बुखार से शरीर टूटने को हुआ ।

तभी दरवाजे पे नॉक हुआ आकाश की हालत तो थी नहीं उठ के खोलने की उसने नॉक इग्नोर किया। फिर २-३ बार नॉक हुआ आकाश को थोड़ा इर्रिटेशन हुआ उसने आकर दरवाजा खोला तो सामने आबिद खड़ा था ।

आबिद: अरे आपकी कंडीशन मालूम पड़ी मुझे । आपको मुझे बोलना चाहिए था न खाने की व्यवस्था कुछ कर देता मैं। मुझे लगा आप मंगवा रहें हैं खाना कहीं से वो तो आज वाइफ बोली की दिन भर से खाना नहीं आया है आपके यहाँ । मेरे यहाँ का खाना तो आप खाएंगे नहीं ये लीजिये ये आपके वाले होटल से ही मैं लेकर आया हूँ।

कोई और समय होता तो आकाश मना कर देता पर अभी उसकी भूख उसके 'ईगो और धर्म' पे भारी पड़ गयी। आकाश ने खाने का पैकेट ले लिया । बहुत तेज भूख के बीच जैसे ही खाना मिला आकाश के आंसू आ गए ।

अब ये रोज का सिलसिला हो गया। आबिद खाना बाहर रखकर दरवाजे पे नॉक कर देता । आकाश थोड़ी देर बाद खाना उठा लेता।

लगभग १ सप्ताह हुआ था की आकाश को खाने के स्वाद में अंतर समझ आने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे घर का खाना आ रहा हो ।उसका १-२ बार मन हुआ पूछने का फिर उसने रहने दिया क्यूंकि खाना उसे अच्छा ही लग रहा था । उसकी तबियत ठीक होने लगी । उसके अंदर इस मुस्लिम परिवार के लिए कृतज्ञता भर गयी थी । फिर जब वो नेगेटिव हो गया तो उसने आबिद का दरवाजा नॉक किया एक प्रेग्नेंट महिला ने दरवाजा खोला । उसे देखकर आकाश चौंक गया । उसने आकाश से नमस्ते की । तब तक आबिद भी आ गया ।

आबिद: हाँ । आकाश ।।

आकाश : अरे वो होटल वाले का कितना हुआ था लगभग १० दिन खाना आया था दोनों टाइम ?

आबिद (सकुचाते हुए ): यार खाना होटल से २ दिन ही आया था फिर वाइफ बोली की बीमार को ऐसा खाना नहीं खाने देना चाहिए तो इसी ने बनाया खाना पर इसने साफ़ सफाई का बहुत ध्यान रखा था यार ।

आकाश : कितना टाइम चल रहा है भाभी जी का ? 

आबिद: सातवां महीना है ।

उसे याद आया की उसकी पत्नी का भी सातवां महीना ही चल रहा है और वो बोल रही थी फ़ोन पे की इस हालत में किचन में जाने तक का मन नहीं करता और ये महिला उसे खाना पहुंचाती रही।

आकाश को बहुत ही ग्लानि महसूस हुयी। ऐसा लगा जैसे किसी ने कोई बोझ रख दिया उसके ऊपर ।एक गर्भवती महिला पिछले ८ दिन से उसका खाना बना रही थी जिसके हाथों का खाना उसने बस इस कारण खाने से मना कर दिया क्यों की वो लोग मुसलमान हैं ।अंतर क्या है उसके और आबिद के परिवार में ,दोनों की नयी शादियां हैं, दोनों की पत्नियां गर्भवतीं हैं । खाने का स्वाद तक उसे अपने घर जैसा लगा था। 

आकाश बिना कुछ बोले ही चला गया । आबिद को लगा शायद आकाश को बुरा लग गया है । 

थोड़ी  देर बाद आबिद के दरवाजे पे नॉक हुयी। आबिद ने खोला तो देखा की आकाश है ।

आकाश ने मिठाई का पैकेट दिया आबिद को और बोला : अंदर नहीं बुलाएँगे ?

आबिद: आईये न ।

आकाश : भाभी आपने धर्म भ्रष्ट कर दिया मेरा ।
शहाना : भैया वो ...

आकाश : (उसकी बात बीच में काटते हुए ) पर मुझे बचा लिया ।'तेहरी' जो उस दिन उधार रह गयी आज मिलेगी?

शहाना(आंसू पोंछते हुए): तेहरी तो १० मिनट में बना दूंगी मैं।

थोड़ी देर बाद आकाश 'तेहरी' खा रहा था। 'तेहरी' बहुत लजीज थी ।

PS: तेहरी एक तरह की खिचड़ी होती है

Apr 27, 2021

माँ की जीत

 अस्पताल का AC चल रहा था फिर भी सौरभ और मेघा के चेहरे पे पसीने छूटे हुए थे । दोनों डॉक्टर से मिलने आये हुए थे । मेघा ५ महीने की गर्भवती थी ।

०२ दिन पहले जब वो लोग रूटीन चेक अप के लिए डॉक्टर के पास आये थे तो डॉक्टर ने सोनोग्राफी करने का बोला था । ये रिपोर्ट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है क्यूंकि इसमें बच्चे का आकार दिखने लग जाता है । ये भी मालूम पड़ जाता है की बच्चे में कोई विकार तो नहीं है । अगर रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ होता है तो यही आखिरी मौका होता है बच्चा अबो्र्ट कराने का ।

डॉक्टर ने उन्हें बताया की बच्चे की रिपोर्ट में कुछ समस्याएं आयी हैं । उन्होंने मेघा से कहा की आप बाहर चले जाएँ, मैं आपके पति से कुछ बात करना चाहता हूँ । मेघा ने कहा आप को जो भी बोलना है मेरे सामने बोलिये , मेरी चिंता मत कीजिये ।

डॉक्टर: आपके बच्चे को "Hypoplastic left heart syndrome " है । आसान शब्दों में कहें तो दिल के दो हिस्से होते हैं एक लेफ्ट में और एक राइट में । दोनों के अलग अलग काम होते हैं, पर इस बीमारी में लेफ्ट वाला हिस्सा सही तरीके से डेवेलप नहीं हो पाता है । इसके सर्वाइवल के चांस बहुत कम हैं । ये अपना समय पेट में ही पूरा कर ले तो बड़ी बात है । ऐसा लाखों में एक केस आता है ।

सौरभ : सर्जरी वगैरह करने से काम नहीं हो सकता है ?

डॉक्टर : काम तो चल सकता है पर ७-८ सर्जरी होती हैं उसके बाद भी कोई गॅरंटी नहीं दी जा सकती । मैं डॉक्टर हूँ मेरा काम है आपको वास्तविक स्थिति से वाकिफ कराना । बच्चे के पेरेंट्स आप हैं तो अंतिम निर्णय आपका होगा, पर मेरी सलाह है की बच्चा अबो्र्ट करा देना चाहिए आपको तकलीफ के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा।

सौरभ: सर, हम आपस में और अपने परिवार से बात कर के आपको बताते हैं ।

इस पूरे कन्वर्सेशन में मेघा चुपचाप बैठी थी ।

सौरभ ने पहले अपने घर पर और फिर मेघा के घर पर सबको इस बात की जानकारी दी और उनकी राय मांगी । डॉक्टर पर शक करने का कोई कारण नहीं था फिर भी एक दो और डॉक्टरों को फ़ोन किया । सभी का एक ही मत था की ये डॉक्टर सही कह रहा है । सभी दुखी थे पर सबका ही कहना था की बच्चा अबो्र्ट कराना ही बेहतर होगा । अभी थोड़ी तकलीफ और दर्द सह के भविष्य का बड़ा दर्द बचाना ही ठीक है ।

मेघा अब तक चुप ही बैठी थी। सौरभ ने उसे आकर सबका मत बताया ।

मेघा : आप क्या सोचते हो ?

सौरभ: यार हमारा पहला बच्चा था मोह तो हो ही जाता है पर मुझे भी यही लगता है की हमें इस चीज को दिमाग से हल करने की जरुरत है । जितना देरी करेंगे एबॉर्शन के निर्णय में उतना तुम्हारे शरीर को ही नुकसान होगा । हम दोनों अभी यंग हैं फिर प्लान कर लेंगे ये सब । अभी जो एक्सपर्ट है उसकी राय मानी जाये । मैंने नेट पे भी देखा है डॉक्टर सही ही कह रहा है ।

मेघा : देखिये ये हमारा पहला बच्चा है और जब से ये बच्चा मेरे पेट में आया है तब से मैं इसके साथ जी रही हूँ । पता नहीं कितनी बातें की हैं इससे । कितने नाम सोच रखे हैं इसके लिए । ये मेरी दिनचर्या ,मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया है । इसने मुझे माँ बनने की ख़ुशी दी है जो की दुनिया का सबसे खूबसूरत तोहफा होता है किसी भी औरत के लिए कुदरत का दिया हुआ । जहाँ तक बात है इस बच्चे की तो जिंदगी और मौत तो भगवान के हाथ में है । कोई किसी की जिंदगी की जिम्मेदारी नहीं ले सकता । मेरे बच्चे को जीना है या नहीं ये भगवान तय करेगा । मैं माँ हूँ मैं बस जिंदगी दे सकती हूँ ले नहीं सकती तो भले ही इस बच्चे के सर्वाइवल के चांस ०% हों मैं तो भी बच्चा अबो्र्ट नहीं कराने वाली । भगवान की जो मर्जी हो वो करे मैं अपनी मर्जी से तो अपना बच्चा नहीं मरने छोडूंगी । मैं अपने आप को क्या जवाब दूंगी ।

सौरभ: देखो तुम अभी भावनाओं में बह रही हो प्रक्टिकली ये भी सोचो की ये तेरी बॉडी को भी तो नुकसान पहुचायेगा अगर देर सबेर कुछ प्रॉब्लम हुयी तो ?

मेघा: यार मुझसे प्रक्टिकली सोचते अभी बनेगा नहीं । मैं इस बच्चे को केरी करुँगी मैंने तय कर लिया है । सारा नुकसान मेरे शरीर पे पड़ना है मैं झेल लूंगी । शरीर मेरा है तो निर्णय भी मेरा होगा ।

सौरभ मेघा की जिद्द से वाकिफ था उसे मालूम था की अगर एक बार मेघा ने कुछ निर्णय ले लिया तो कोई उसका निर्णय नहीं डिगा सकता ।

सौरभ ने भी सोचा की उम्मीद कभी किसी इंसान की ख़तम नहीं की जानी चाहिए । अगर मेघा का इतना ज्यादा मन है तो चलते हैं साथ में उसकेसाथ ही उसने अपने आपको आने वाले निश्चित कल के लिए भी तैयार कर लिया था  

जब जिंदगी में तूफ़ान आते हैं तो बहुत सारे लोग उससे बचने के लिए कोई छाँव ढूंढते हैं और तूफ़ान के बीतने का इंतजार करते हैं पर बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो उसका सामना करते हैं

मेघा ने तूफ़ान से लड़ने का तय कर लिया था ।

उसके इस एक निर्णय से जैसे उसके दोस्तों और रिश्तेदारों में तूफ़ान सा आ गया था । बहुत लोगों ने बहुत बातें कहीं । किसी ने कहा अपने ईगो में मेघा किसी की सुनती नहीं है । किसी ने जिद्दी कहा, किसी ने बेवकूफ । किसी  ने ‘Immature’ कहा, किसी ने ‘Emotional Fool’ । समाज हमेशा से आम इंसान चाहता है हीरो कभी पसंद नहीं करता। जब आप समाज की तय मान्यताओं के खिलाफ खड़े होते हैं । कहीं कहीं लोगों का ईगो हर्ट होता है । वही यहाँ हो रहा था । उसके पति को छोड़ किसी ने उसका साथ नहीं दिया । ऐसा लगता था जैसे लोग मरे जा रहे थे की कैसे उसे गलत साबित करें ।

दिनों को जैसे पंख लग गए थे । ऐसे तो मेघा को मोटा होना चाहिए था पर वो चिंता में पतली होती जा रही थी । हर घडी उसे अपने बच्चे का ही ख्याल रहता । सोते जागते बस वहीँ ध्यान रहता । सुबह जागते ही अपने पेट पे हाथ लगाकर महसूस करती बच्चे को । कई बार रात में डरावने सपने आते और अचानक जाग जाती । ऐसे सोचिये जैसे कोई इंसान अपने शरीर पर एक जिन्दा बम बांध ले और वो हर घडी टिक टिक कर रहा हो फिर आपका सारा ध्यान बस वही लग जाता है । आप दुनिया में रह के भी दुनिया में मौजूद नहीं रहते वही हाल मेघा का था ।

हर दिन एक नयी जंग थी । हर सुबह एक और दिन शांति से बीत जाने का संदेशा लाती ।

धीरे धीरे समय पूरा हुआ और अचानक एक दिन उसे दर्द होना शुरू हुआ सौरभ उसे लेकर अस्पताल भागा वहां डिलीवरी नार्मल हुयी ।बच्चे को पैदा होते ही ICU में ले जाना पड़ा क्यूंकि उसकी ह्रदय गति सामान्य नहीं थी । मेघा को जैसे ही होश आया उसने बच्चे के बारे में ही पूछा । सौरभ ने उसे ICU में दूर से बच्चा दिखा दिया । अपने बच्चे को देखकर उसके अंदर कुछ उमड़ने लगा । कभी कभी ऐसा होता है न कि सारी जिंदगी एक लम्हे पर आकर ठहर जाती है। आपके सारे निर्णय सारे फैसले उस लम्हे पे आकर रुक जाते हैं । वही लम्हा एक निर्णायक सा हो जाता है । आपकी असफलता और सफलता के बीच बस वो एक लम्हा आकर खड़ा हो जाता है और ऐसे लम्हे में आपकी जिंदगी आपकी आँखों के सामने घूमने लगती है। पहली बार बच्चा पेट में आने से लेकर के आज तक का समय मेघा की आँखों के आगे घूम गया डॉक्टरों ने बताया की २ दिन बच्चे को ICU में रखेंगे उसके बाद उसे वो लोग ले जा सकते हैं लेकिन फिर एक सप्ताह में ही सर्जरी के लिए प्लान करना होगा ।

०२ दिन बाद वो लोग बच्चे को घर ले आये । मेघा बहुत खुश थी । अभी अभी प्रसव की कमजोरी से उठी थी पर अलग स्तर के उत्साह पे थी । उसे लग रहा था बस अब सब सही होने जा रहा है पर जब लगता है न की सब सही हो रहा है तभी गड़बड़ होना शुरू होती है ।

घर आने के ३-४ घंटे बाद अचानक बच्चे की सांस फूलने लगी उसे लेकर सौरभ और मेघा तुरंत डॉक्टर के पास भागे पर तब तक शायद देर हो चुकी थी । बच्चे की साँसे थम गयीं । डॉक्टर ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया । कई बार भगवान बहुत क्रूर हो जाता है । वो बच्चा जिसने माँ के पेट में ९ महीने काट दिए वो बाहर दुनिया में २ दिन पूरे नहीं कर पाया । वो लोग बच्चे का शव लेकर वापिस आ गए । घर में रोने का दौर शुरू हुआ । ऐसे तो सभी को होनी का अंदाजा था पर कई बार कोई उम्मीद न होने पर भी एक उम्मीद बनी रहती है । मेघा और सौरभ को छोड़ बाकि लोग रो रहे थे । मातम मना रहे थे । सौरभ मेघा का हाथ पकड़ के बैठा था पास ही बच्चे का शांत शरीर पड़ा था । आंसू छंटे तो उसकी जगह गुस्से ने ले ली । बगले वाले कमरे में मेघा की सास ससुर उसके ऊपर गुस्सा हो रहे थे  बच्चा रखने की जिद्द के लिए । मेघा की माँ सौरभ का नाम लेकर कुछ बड़बड़ा रहीं थी । बाहर भी लोग यही बातें कर रहे थे की फालतू में इतनी जिद्द की अब देखो क्या मिला । मेघा स्तब्ध थी ।  शांत थी । थक गयी थी । वो हार गयी थी । ०९ महीने से लड़ रही थी वो । आज सारा शरीर सुन्न हो गया था, बस बच्चे को एकटक देखे जा रही थी वो । सचमुच क्या मिला उसे ०९ महीने की धुकधुक ,बेचैनी और आज का ये दिन । सचमुच लोग सही कह रहे थे हार गयी थी । उसी के साथ हार गयी थी एक माँ ।

यही सोचते सोचते उसकी आँखों से आंसू बहने लगे तभी उसे लगा जैसे एक बच्चे के हाथ उसके आंसू पोंछने लगे । उसने आँखें खोली तो देखा उसका बच्चा था जो उसके आंसू पोंछ रहा था और कह रहा था की माँ तू मत रो । भगवान ने तो मेरा मरना कब का लिखा था पर तू दुनिया से , किस्मत से युद्ध करके मुझे यहाँ तक ले आयी । इस दुनिया की मान्यताओं के हिसाब से तो मुझे कब का मर जाना था पर तू मेरी ढाल बनी । मैं अगली बार फिर तेरा बच्चा बन कर वापिस आऊंगा । तू हारी नहीं है जीती है माँ  मेघा ने अपनी ऑंखें पोंछी तो देखा कोई नहीं था उसके मन का भरम था ये । उसकी नजरें वापिस अपने बच्चे पे गयीं तो एक पल के लिए उसे ऐसा लगा जैसे उसका बच्चा मुस्कुरा रहा है । तभी सौरभ ने उसका हाथ पकड़ के कहा की मुझे भी अभी वही महसूस हुआ जो तुझे हुआ और तू सचमुच हारी नहीं है जीती है । तेरा बच्चा जहाँ भी होगा तुझपे गर्व कर रहा होगा ।

वो लोग जो तूफ़ान से लड़ने की हिम्मत दिखाते हैं उन्हें दुनिया पागल समझती है । कभी कभी ऐसे लोग तूफ़ान से जीत जाते हैं पर कभी कभी तूफ़ान जीत जाता है और इंसान हार जाता है । आखिर भगवान भी नहीं चाहता कि एक आम इंसान तूफ़ान से जीत जाये क्यूंकि फिर उसकी क्या जरुरत रह जाएगी ।