Dec 14, 2019

कर्मा

तारीख : १४/१२/०२ 
किसी ने बहुत ठीक कहा है की कभी कभी कुछ कहानियां अपना अंत निगल जाती हैं और अपने पीछे कई और कहानियों को छोड़ जाती हैं. जो कहानी मैं सुनाने जा रहा हूँ वो भी कुछ ऐसी ही है..
लगभग ६  साल हो गऐ थे मुझे अपने ननिहाल गए हुए. पढ़ाई में इतना व्यस्त और दूर हो गया था की समय ही नहीं निकल पा रहा था, पर पिछले ५ साल से लगातार गाँव जाने की कोशिश कर रहा था किसी खास कारण  से, और इस बार जाना हो गया.
कारण थी एक खबर जो ५ साल पहले सुनी थी और लगातार खलबली मचाये हुए थी दिल में. ये कहानी उस समय की हैं जब समाज, जाति और धर्म के गंदे दलदल में इतना गहरा फंसा हुआ था की सम्मान के लिए जान ले लेना (Honor Killing ) आम सी बात हुआ करती थी। खाप पंचायतों का बोलबाला था।

भाग -१
समय : १९९६  (०६) साल पहले। .....
गाँव : वजीरपुर
जिला : पानीपत
मीरा एक उन्मुक्त स्वाभाव की लड़की थी , उम्र कुछ १६ साल के आसपास होगी | खिलखिला कर हंसना , हर समय मुस्कुराना , यहाँ से वहां भागते रहना यही स्वभाव था उसका। वो ऐसी लड़कीयां नहीं होती हैं घरों में जो पूरे घर की रौनक बनी रहती हैं।  शादी ब्याह, तीज त्योहारों सबसे ज़्यादा उमंग में वही रहती हैं।  आँखों का रंग हरा था उसका।  यही उसकी सब अलग पहचान थी।
संयुक्त परिवार की सबसे छोटी बेटी , सबसे ज्यादा लाड प्यार में पाली।
कच्ची उम्र थी, चंचल स्वभाव था एक दूसरी जाति के लड़के के प्यार में पड़ गयी. दीन दुनिया के झंझटों से बेखबर ये प्रेमी जोड़ा अपने सपने बुनता रहता था।  उन्हें पता था कि अगर घर , परिवार और समाज को उनके संबंधों के बारे में पता चल गया तो बवाल मच जाना है ,पर एक उम्र होती हैं जिसमे गलतियां करने में  इतना मजा आता है की आप अपने को रोक नहीं पाते। आप नियमों को मानना नहीं चाहते। एक विद्रोह होता है आपके अंदर, आप जिंदगी को एक प्रेम गीत मानते हैं और कई कहानियों के बुरे अंत देख कर भी आप ये मानकर चलते हैं की मेरे साथ सब अच्छा होगा। यही हाल मीरा और रामेश्वर का था।  वो एक दोहरी जिंदगी जी रहे थे।  सबके सामने वो दोनों अपने परिवार की खुशियां बढ़ाते और चोरी छिपे अपनी एक अलग ही सुनहरी दुनिया का सपना संजोते।
चूँकि दोनों ही लड़कपन से गुजर रहे थे और ऐसे समय में आपके निर्णय में दिमाग का कोई योगदान नहीं होता आप अपने दिल को जिदंगी की लगाम पकड़ा देते हैं।  उनके साथ भी यही हुआ उनको मालूम ही नहीं पड़ा और एक दिन उनका प्यार सारी हदें पार गया।
उनको इस बात का अंदाजा भी नहीं था की क्या हो गया पर जैसे की प्रकृति का नियम है की हर ख़ुशी के बाद दुःख आता है और दुःख ज्यादा गहरा होता है।  उनके ख़ुशी के दिन खतम होना शुरू हुए जब मीरा के शरीर में परिवर्तन दिखाई देने लगे।  शुरुवात में घर परिवार वालों ने उसके अचानक फूलते शरीर और उड़ते चेहरे के रंग  पे ध्यान नहीं दिया फिर एक दिन जब ज्यादा बुखार होने पे शहर के डॉक्टर को दिखाया तो उसने बताया की ०५ माह का गर्भ है। अब एक तरफ था एक रूढ़िवादी समाज जिसमे कम उम्र में बेटी के मर जाने पे ख़ुशी मनाता है  यह कहकर की "बेटी मरे भाग्यवान की ", जो दूसरी जाति के हाथ का पानी भी नहीं पीता , एक लाइन में बैठकर खाना भी नहीं खाता, सुबह सुबह सामने दिख जाने पे  नहा कर बाहर निकलता है और एक तरफ थी एक १६-१७  साल की मासूम  लड़की जिसके पेट में उसका ०५ माह का गर्भ था. लड़की का डर के मारे बुरा हाल था हंगामे का डर था  हंगामा होना ही था।
सबसे पहले रामेश्वर के परिवार को पैसे और धमकी देकर गाँव छुड़वाया गया। दो दिन बाद रामेश्वर वापिस लौट कर आया एक आखिरी बार मीरा से मिलने को।  उस दिन क्या हुआ पता नहीं पर ०१ दिन बाद रामेश्वर की लाश गाँव के बाहर की नहर में मिली।
मीरा की समस्यायें  यहाँ से शुरू हुयी थीं। जबसे मालूम पड़ा था की उसका गर्भ गिराया नहीं जा सकता बढे भाई साब की चुप्पी उसे डरा रही थी।  सबसे लाड़ली थी वो इन भाई साब की ,अपनी बेटी जैसे पाला था उसे ।  वो उन २-३ लड़कियों में शुमार थी अपने गाँव की जो ८वीं  के आगे पढ़ने स्कूल जा रही वो भी केवल इन भाई साब के कारण।  जब भी रात बे रात देर से घर लौटती और पापा मम्मी या मंझले और छोटे भइया गुस्सा करते तब यही भाई साब उसे बचाते और आज आलम ये था की इन भाई साब की चुप्पी में उसे एक मौत का सन्नाटा सा सुनाई आ रहा था।  वो घर पहुंची तो उसे एक कमरे में बिठा दिया गया और ०३ बड़े भाई , पापा , भाइयों के बच्चे , बहन जीजा , भाभियाँ और माँ सब एक दुसरे कमरे में चले गए कुछ बात करने।  ऐसा पहली बार हुआ था जब इतनी रात हो गयी और किसी ने उसे खाने का भी नहीं पूछा।  दुःख, अवसाद , डर , चिंता सबके बीच कब वो सो गयी उसे पता नहीं चला।  उसे सपना भी आया की वो और रामेश्वर शहर में जाकर रह रहे हैं उनको बेटा हुआ है और वो नींद में ही मुस्कुराने लगी।  सपना टूटा जब अचानक दरवाजा खुला और उसके पेट पे एक लात पड़ी अँधेरे में।  वो हड़बड़ा कर उठी पर तब तक लात घूंसों की बौछार सी हो गयी।  हर तरफ से मार पड़ रही थी। गालियां दी जा रही थीं किसी ने रंडी भी बोला , अपने ही परिवार में किसी ने माँ की और किसी ने बहन की गाली भी दी।  फिर एक डंडा उसकी पीठ में लगा फिर एक डंडा उसके सर पे लगा फिर उसे याद नहीं है कितना मारा गया। देर रात में  जब नींद खुली तो वो एक मांस का लोथड़ा बनी हुयी थी शायद सब मरते मरते थक गए थे या उसे मरा मान लिया था और एक बैलगाड़ी पे पड़ी हुयी थी वो साँस बहुत बहुत धीरे धीरे और बहुत देर में आ रही थी।  जिस चादर एम् उसे लपेटा वो खून से सं गयी थी पेट पे सबसे ज्यादा गुस्सा निकला गया था जैसे ही बैलगाड़ी चलना शुरू हुयी उस ने एक बार ऑंखें खोल कर अपने घर को देखा।  सब लोग खड़े थे इन्ही की गोदियों में खेल के वो बड़ी हुयी थी। इसी दालान में कितना हंसी थी। यही भाई भाभी उसपे जान छिड़कते थे आज इतना नाराज हुए की उससे एक बार भी बात नहीं की और रामेश्वर कहाँ है वो क्यों नहीं आया इन लोगों को समझाने। बड़े और मंझले भैया आपस  में बात करते जा रहे थे : जहाँ उस लड़के को फेंका था नहर में उसी तरफ इसे फेंकना।
ओह्ह तो इसलिए रामेश्वर नहीं आया फिर अचानक उसे कुछ याद आया उसने अपने पेट पे हाथ लगाकर देखा तो कोई हलचल नहीं मालूम पड़ी।  ओह्ह तो ये भी चला गया उसके चेहरे पे एक हंसी सी आ गयी।  एक क्रूर सी हंसी जो कह रही हो की ए दुनिया तेरा क्या बिगाड़ा था हमने जो मेरा सब कुछ छीन लिया।
अचानक बैलगाड़ी रुकी और जोर से कुछ सर पे पड़ा और उसका रहा सहा दम भी टूट गया। आंखे खुली रह गयी और चेहरे पे वही एक क्रूर सी मुस्कान रह गयी।

भाग -२
गाँव में कुछ दिनों तक खुसुर पुसुर रही इस घटना की उसके बाद सब शांत हो गया। गाँव में यही बोल दिया गया था की किसी बुखार से रातों रात उसकी मौत हो गयी और बुखार न फैले इसलिए उसे नहर में सिरा दिया।  जानते सब थे पर पता नहीं बुराई को छिपाने में कैसी एक एकता सी आ जाती है कभी कभी हम लोगों में। अंदर ही अंदर लोगों की सहानुभूतिं मीरा के भाइयों के साथ ही थी। सामजिक मापदंडों पे मीरा ही गुनहगार थी।  ऐसे भी इस जुर्म को सम्मान की लड़ाई का नामा दिया गया था। रामेश्वर के परिवार का कुछ अता पता नहीं था।  रामेश्वर रहा नहीं, मीरा रही नहीं।  कुछ दिन बाद गाँव में प्रधानी के चुनाव होने थे और इस घटना को अपने उचित अंजाम तक पहुंचने और परिवार और समाज की इज्जत बचने के इनाम स्वरुप बड़े भाई साब को प्रधानी का टिकट मिल गया था साथ ही छोटी भाभी को गर्भ ठहरा था तो सारा परिवार इन्ही चीजों में मशगूल हो गया।  ये कहानी यही ख़त्म हो गयी...
शायद .....

भाग -३
समय :१९९७ 
मेरा नाम विवेक है।  मीरा मौसी मेरी मम्मी की चचेरी बहन थी और मेरी मौसी लगती थीं। जब भी ननिहाल जाते तब उनसे मिलना होता। हम बच्चों की अच्छी बनती थी उनसे क्यूंकि नाना के बड़े से संयुक्त परिवार में मामा  मौसियों में वो ही हमारी उम्र के आसपास आ पाती थीं। बहुत प्यार करती थीं हम लोगों से।  मां मौसियों के बच्चो का एक दल था मैं उस दल में सबसे बड़ा था और मीरा मौसी मुझे ४-५ साल बड़ी रही होंगी तो वो ग्रुप की कप्तान और मैं उनका राइट हैंड था।  उनकी ऑंखें हरी थी ।  हम हर साल गर्मियों की छुट्टी में नानी के घर जाते थे।  पर जिस साल ये मीरा मौसी वाला मामला हुआ था उस साल नहि गए।  मां ने गॉव में बीमारी फैली होने का बहाना बना दिया। दादा दादी के घर होकर लौट आये।  चूँकि सभी बच्चों का जुड़ाव अपने ननिहाल से अधिक होता है इसलिए बड़ा बुरा लग रहा था।
२०१४ में जब गए तो मीरा मौसी नहीं थी घर में। हमने पूछा तो बोला गया कि पिछले साल उनकी हैजे से मौत हो गयी। चूँकि उस समय हैजा, कॉलरा इन से मौत होना आम बात थी तो बच्चों का ज्यादा ध्यान नहीं गया।  ऐसे भी उनके बारे में यही सुन रहे थे की वो काफी बीमार रहने लगी थीं।  मेरी उनसे घनिष्ठता बहुत थी तो मुझे बड़ा बुरा लगा। चूँकि हम बच्चे थे और महिलाओं की गप शाप वाली महफ़िल में घुष जाया करते थे तो थोड़ी खुसुर फुसुर मेरे कान में भी पड़ी। फिर अपने मामा के एक बेटे जो मेरा दोस्त भी था उस से पूरी कहानी मालूम पड़ी।  बहुत ही बुरा लगा।  बहुत ज्यादा सही गलत तो जानते नहीं थे हम, पर मीरा मौसी के साथ जो हुआ उसे सुनकर खून खौल गया।  सोचा ऐसा कोई कैसे कर सकता है किसी के साथ।  सच बताऊँ तो मुझे भी समस्या का समाधान नहीं पता था पर वो मीरा मौसी की हत्या तो नहीं ही था।  बचपन में पड़ी हुयी चोटें ज़्याडा गहरी होती हैं तो मैंने तय किया की कभी भी अब नानी के घर नहीं जाऊंगा.

भाग -४ (वर्तमान)
समय: २००२  
०५ साल बाद गाँव आया था सब कुछ बदला हुआ था।  मोबाइल, डिश एंटीना घर घर आ चुके थे, बैलगाड़ी की जगह मोटर गाडी, जीप चल रही थीं।  लोगों में आधुनिकता आ गयी थी।  मामा मामियोँ और नाना नानी से मिलकर भागा मीरा मौसी के घर, ताकि जो खबर सुन कर मैं आया था  उसकी सत्यता जान सकूं।  घर में अजीब शांति और सन्नाटा पसरा था।  बड़ी मामी (मीरा मौसी की बड़ी भाभी) बाहर आयीं।  चूँकि मैं कई साल बाद गाँव आया था तो सभी कुशल मंगल पूछने के बाद मामी की अचानक रुलाई फुट पडी।  तब मालूम पड़ा की मीरा मौसी की मौत के बाद छोटी मामी को बेटी हुयी पर कमर से नीचे पूरे शरीर को लकवा मारा हुआ था।  पैर हिला नहीं पाती , ५ साल की होने को है पर रोती रहती है पूरे समय।  मीरा मौसी की मौत के बाद और इस बच्ची के होने के बाद ,प्रधानी का चुनाव मामा जी हार गए और उसी दिन उन्हें अटैक आ गया और उनकी मृत्यु हो गयी।   उसके बाद गांव में हैजा फैला और मंझली नानी (मीरा मौसी की माँ) भी नहीं रही।  मामी रोते रोते बोलते जा रही थीं की जब से ये लड़की हमारे घर में आयी है एक मनहूसियत सी फ़ैल गयी है।  पता नहीं किस जन्म का बदला ले रही है मैंने पूछा कहाँ है वो तो वो बोलीं छत पे लेटी है पलंग पे।  चूँकि मैं उसी को देखने आया था बिना एक पल गंवाए छत की तरफ भागा।  छत पे जाकर देखा एक बच्ची पलंग पे लेटी हुयी है।  कमर से नीचे शरीर एक दम सूखा हुआ है, लगातार रो रही है फिर मेरा ध्यान उसकी आँखों की तरफ गया।  तो जो सुना था वो सच ही है , वही है ये वही हरी ऑंखें वैसे ही नाक नक्श।  जिसने भी मीरा मौसी को देखा है वो एक बार में पकड़ लेगा।  मैंने उसे गोदी उठाया तो वो २ मिनट के लिए चुप हो गयी।  मैंने उसे बोला : मीरा मौसी आप ही हो न??
वो फिर से रोने लगी तो उसे लिटाकर मैं कुछ सोचता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था तो एक नजर उसके चहेरे पे गयी और ऐसा लगा जैसे वो मुझे मुस्कुराते हुए देख रही है वही क्रूर सी मुस्कान.... वही बदले से ओतप्रोत मुस्कान। एक ऐसे इंसान की मुस्कान जिससे उसका सब कुछ छीन लिया गया हो उसे असहाय और कमजोर समझकर और अब उसके पास बदला लेने का मौका आया हो।
नीचे आया तो मामी रोते रोते बड़बड़ा रहीं थी की पता नहीं किस पाप का प्रायश्चित करवा रही है ये लड़की। जिस दिन से पैर रखा है अपशकुन ही हो रहे हैं घर में।  इसके पैदा होते ही पूरे गाँव में महामारी फ़ैल गयी थी।  इसके माँ बाप भी चले गए उसी में , पर ये तब भी जी गयी।  पता नहीं किस जन्म के पापों का बदला ले रही है ये।
मेरा मन हुआ बोल दूँ की इसी जन्म के बदला है मामी।
मैं मामी को बड़बड़ाता छोड़कर बाहर निकल आया तो अजीब सी संतुष्टि महसूस हुयी ऐसा लगा जैसे कोई कहानी अधूरी रह गयी थी वो अपने आप पूरी हो रही है।
इतने साल हो गए इस घटना को आज भी बस ०२ ही चीजें  याद आती हैं वो ऑंखें और वो मुस्कान।।
किसी ने सच ही कहा है कर्म सबका हिसाब करते हैं, और यहीं करते हैं। 

3 comments:

Upendra said...

A good short story

tushar sharma said...

This was intriguing. Good writing. Itni novels padhne ka fayada ho gaya tujhe, likhna aa gaya

Rakesh Kr Singh said...

wonderfully created & interesting till end