Jan 5, 2021

पापा

 कंधे पे बिठा के मेला दिखाने ले जाते थे पापा 

रात में कितने भी थके हों पर कहानी जरूर सुनाते थे पापा 

मेरी हर जीत पे मोहल्ले में मिठाई बंटवाते थे पापा 

फिर हर हार पे हिम्मत भी बंधाते थे पापा 

छोटी से छोटी जीत को भी त्यौहार सा मनाते थे पापा 

बड़ी से बड़ी हार पे भी पीठ थपथपाते थे पापा 

खुद तंगहाल रह मुझे नए कपडे दिलवाते थे पापा 

मेरी गलतियों पे मुझे डांटते थे पापा 

पर मैं जब रूठ जाऊँ तो खुद ही मुझे मनाते थे पापा 

फ़ोन पे कहते मम्मी से बात कर लिया करो याद करती है 

पर खुद कितना याद करते हैं ये कभी न बताते थे पापा 

पूरे मोहल्ले के सामने मुझे अपनी शान बताते थे पापा 

मैं उनकी कमजोरी और मेरी ताक़त थे पापा 

कल पापा को देखा तो लगा क्या बूढ़े हो रहे हैं पापा 

क्या कभी बूढ़े भी होते हैं पापा ??



3 comments:

Anonymous said...

Bahut khub😍

anshul said...

Wonderful , touching poem....Arvind U r such a master with words....
Sachh main aise hi hote hain "papa"

Unknown said...

Kya bat..bahut badhiya...